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________________ संवर तथा निर्जरा ४३३ (१) वाचना (२) प्रच्छना (३) अनुप्रेक्षा (४) आम्नाय और (५) धर्मोपदेश - स्वाध्यायतप पाँच प्रकार का है । विवेचन - प्रस्तुत सुत्र में स्वाध्याय तप के पाँच प्रकार बताये है। (१) गुरुमुख से मोक्ष मार्ग प्रदर्शक ज्ञान का सुनना, उसके शब्दों और अर्थों को समझना, वाचना है; अथवा सत्शस्त्रों को पढ़ना वाचना है । (२) वाचना द्वारा ग्रहण किये हुए ज्ञान के शब्द तथा अर्थ संबन्धी किसी भी शंका को गुरु से अथवा बहुश्रुतज्ञानी से पूछकर उसका निवारण करना, समाधान प्राप्त करना, प्रच्छना है ।। (३) सीखे हुए हुए शंकारहित ज्ञान को बारम्बरा चिन्तन, मनन करके हृदयंगम करना, अनुप्रेक्षा है । (४) पाठ को बार-बार उच्चारणपूर्वक घोखना, उसका परावर्तन करके स्मृति में सुदृढ़ करना आम्नाय-परिवर्तना है। (५) अपने सीखे हुए हुए ज्ञान को अन्य लोगों को सुनाना, जिससे दे उन्मार्ग को छोड़कर सुमार्ग ग्रहण करें, सत्य तथ्य कोपहचान कर उस पर श्रद्धाशील बने, सन्मार्ग का आचरण करें यह धर्मोपदेशना है । 'धर्मोपदेश' के लिए आगमों में 'धर्मकथा' शब्द व्यवहृत हुआ है। किन्तु आशय इन दोनों शब्दों का एक ही है। धर्मकथा के चार भेद हैं - (अ) आक्षेपणी कथा -श्रोताओं को मोह से हटाकर तत्त्वज्ञान की ओर आकर्षित करने वाली कथा । (ब) विक्षेपणी कथा - श्रोताओं को कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग की ओर लाने वाली इस कथा में पहले कुमार्ग का वर्णन करके फिर उसमें दोष दिखाकर सुमार्ग का प्रतिपादन किया जाता है । (स) संवेजनी कथा - कर्मों के फलों का वर्णन करके वैराग्य उत्पन्न करने वाली कथा (द) निर्वेदनी कथा - श्रोताओं को संसार के दुःखों का वर्णन' करके संसार-सुखों से उदासीन बनाने वाली कथा । आगम वचनविउसग्गे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वविउसग्गे य भावविउसग्गे य - भगवती श. २५, उ.७ सूत्र २५० (व्युत्सर्ग तप दो प्रकार का है (१) द्रव्यव्युत्सर्ग और (२) भावव्यत्सुर्ग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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