________________
अध्याय १ : मोक्षमार्ग १९ क्षायोपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त हो जाता है, अथवा नीचे गिर जाता है । पतित होने की दशा में या तो अपनी शुद्ध श्रद्धा में मिथ्यात्व का अंश मिला लेता है, अथवा पुनः मिथ्यात्वी बन जाता है ।
वेदक सम्यक्त्व - जीव को उस समय प्राप्त होता है जब वह क्षायोंपशमिक सम्यक्त्व की भूमिका से ऊपर उठकर क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होता है । इस समय वह सम्यमिथ्यात्व नामक प्रकृति के शेष दलिकों का वेदन करके क्षय करता है । इस वेदन के आधार पर ही इसका नाम वेदक सम्यक्त्व पड़ा है ।
सास्वादन सम्यक्त्व - जब जीव औपशमिक अथवा क्षायोपशमिक सम्यक्त्व का वमन (त्याग) करके मिथ्यात्व की ओर गिरता है, उस अंतराल में जब तक मिथ्यात्व का उदय न हो तब तक जो सम्यक्त्व का आस्वादन रहता है, वह सास्वादन सम्यक्त्व कहलाता है ।
उदाहरणार्थ, आम पेड़ की डाली से गिरा किन्तु अभी जमीन पर पहंचा नहीं, गिर ही रहा है; बस यही दशा सास्वादन सम्यक्त्व की है, जीव सम्यक्त्व से छूट चुका है किन्तु मित्थात्व का स्पर्श नहीं हुआ, इस गिरावट के समय में होने वाले आत्म-परिणाम सास्वादन सम्यक्त्व नाम से अभिहित किये गय है।
इस सम्यक्त्व का काल छह आवलिका और ७ समय मात्र है. ।
रूचि की अपेक्षा दस प्रकार का सम्यक्त्व - उत्तराध्ययन सूत्र (२८/१६) में दस रुचियों के नाम इस प्रकार गिनाये गये हैं -
निसग्गुवएसरुई, आणारुई सुत्तबीयरुइमेव ।। अभिगम-वित्थाररुइ, किरिया संखेव धम्मरुइ ॥
(१) निसर्ग रुचि, (२) उपदेश रुचि, (३) आज्ञा रुचि, (४) सूत्र रुचि, (५) बीज रुचि, (६) अभिगम रुचि, (७) विस्तार रुचि, (८) क्रिया रुचि, (९) संक्षेप रुचि, (१०) धर्म रुचि इन रुचियों अथवा रुचिरूप सम्यक्त्व का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
(१) निसर्ग रुचि - परोपदेश के बिना ही सम्यक्त्व का आवरण करनेवाले कर्मों की विशिष्ट निर्जरा होने से समुत्पन्न होने वाली तत्वार्थ श्रद्धा
(२) उपदेश रुचि - अरिहन्त भगवान के अतिशय आदि को देखकर अथवा इनकी वाणी या उनके अनुयायी श्रमणों के वैराग्यवर्द्धक उपदेश
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org