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________________ संवर तथा निर्जरा ४०५ सम्य्गभाषा (३) सम्यगएषणा (४) सम्य्ग आदान-निक्षेपण और (५) सम्यग्उत्सर्ग। छह काय (पांचो स्थावर और त्रस) के जीवों की रक्षा तथा उनकी दया के विचार से भूमि को भली-भाँति देखकर आगे दृष्टि रखकर शांन्ति पूर्वक धीर-धीरे गमन करना, चलना ईर्यासमिती है । प्रसंग के अनुसार अथवा धर्म-प्रेरणार्थ हितकारी (जीवों के लिए कल्याणकारी) मित (परिमित), सत्य और संदेह रहित वचन बोलना अथवा विवेकपूर्वक वचन बोलना भाषा समिति है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सत्य वचन भी कटु न हों, जिससे सुनने वाले को दुःख पहुंचे । जैसे काणे को काणा कहने से उसे दुःख होता है। इसलिए सत्य होते हुए भी काणे को काणा न कहें । कटु, कठोर, मर्मघाती भाषा का प्रयोग सत्य को भी दूषित कर 'असत्य' कोटि में पहुंचा देता है। आवश्यक साधनों, जो जीवन-यात्रा के लिए अनिवार्य हों, की निर्दोष गवेषणा करके उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करना एषणा समिती है। प्रत्येक वस्तु को भली भाँति देखकर, प्रमार्जित करके उठाना या रखना आदान निक्षेप समित है । अनुपयोगी वस्तु यथा -शरीर के मल आदि को देखभाल कर जीवरहित ऐसे प्रासुक स्थान में डालना जिससे किसी अन्य प्राणी को कष्ट न हो, उत्सर्ग समिती है। आगम वचन दसविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा खंती १, मुत्ती २, अज्जवे ३, मद्दवे ४, लाघव ५, संजमे ६, सच्चे ७, तवे ८, चियाए . ९, बंभवेरवासे १०। - समवायांग, समवाय१० (दस प्रकार का धर्म कहा गया है : क्षान्ति (क्षमा), मुक्ति (आकिंचन्य), आर्जव, मार्दव, लाघव (शौच), सत्य, संयम, तप त्याग और ब्रह्मचर्य । धर्म के प्रकार उत्तम : क्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणि धर्म ।६। (१) उत्तम क्षमा (२) उत्तम मार्दव (३) उत्तम आर्जव (४) उत्तम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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