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________________ ३८० तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ८: सूत्र १२ जिस कर्म के उदय से ऐसा शरीर निर्मित हो उसे समचतुरस्रसंस्थान नाम कर्म कहा जाता है । न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थाननामकर्म इस कर्म से ऐसे शरीर की रचना होती है, जिसमें नाभि के उपर के अवयव तो स्थूल (मोटे) होते हैं और नीचे के अवयव अपेक्षाकृत कम स्थूल अथवा पतले । न्यग्रोध अथवा वट वृक्ष भी ऐसा ही होता है, इसीलिए इनका नाम न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान रखा गया है । (स) सादिसंस्थाननामकर्म इस कर्म के कारण ऐसे शरीर की रचना होती है, जो न्यग्रोध परिमंडल से उलटा होता है अर्थात् नाभि से ऊपर के अवयव पतले और नीचे के अवयव स्थूल (मोटे ) होते हैं । इस कर्म के प्रभाव से कुबड़े शरीर की (द) कुब्जसंस्थाननामकर्म रचना होती है । - (य) वामनसंस्थाननामकर्म वामन (बौना ) ऊँचाई में छोटा होता है । — — - (र) हुण्डसंस्थाननामकर्म इस कर्म के प्रभाव से शरीर बेडौल होता है, उसका कोई भी अवयव - अंगोपांग प्रमाण के अनुसार नहीं होता । (३४-३९) Jain Education International - इस कर्म के कारण जीव का शरीर (८) वर्णनामकर्म - इस कर्म के प्रभाव से शरीर का रंग निर्मित होता है । वर्ण पाँच हैं I १. कृष्ण (काला - Black), २. नील (नीला - तोते के पंख जैसा), ३. लोहित (तांबे Copper या सिन्दूर जैसा लाल), ४. हारिद्र ( हल्दी जैसा पीला Yellowish) और ५. सित ( शंख जैसा सफेद White) । इसी अपेक्षा से इस कर्म के उत्तर भेद भी ५ हैं । जिस कर्म के कारण शरीर का रंग काला हो वह कृष्णवर्णनाम कर्म है। इसी प्रकार नीलवर्णनामकर्म, लोहितवर्णनाम कर्म, हारिद्रवर्णनाम कर्म और सित (श्वेत) वर्णनाम कर्म है । यहाँ वैज्ञानिक मान्यता दूसरे ढंग की है, वे शरीर के वर्ण को पर्यावरण पर आधारित मानते हैं । उनका विचार है कि दक्षिणी अफ्रीकी आदि जातियों के लोगों का रंग काला इसलिए है कि वहाँ कड़ी धूप पड़ती है और इस प्रचण्ड सूर्यताप से इनके शरीर का रंग काला पड़ जाता है। इसके विपरीत ठंडे देशों ( इंग्लैंड आदि ) के मनुष्य का रंग गोरा है, क्योंकि वहाँ सूर्यताप कम होता है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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