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________________ आस्रव तत्त्व विचारणा २७१ (भगवन ! किस कर्म के उदय से ज्ञानावरणीय कार्मण शरीर का प्रयोगबन्ध होता है ? गौतम ! ज्ञानी की प्रत्यनीकता-शत्रुता करने से, ज्ञान को छिपाने से, ज्ञान में विघ्न डालने से, ज्ञान मे दोष निकालने से ज्ञान का अविनय करने से, ज्ञान में व्यर्थ का वाद-विवाद करने से ज्ञानावरणीय कर्म का आस्रव होता इन उपरोक्त कार्यों में दर्शन शब्द संयोजित करके कार्य करने से दर्शनावरणीय कर्म का आस्रव होता है ।) ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्म के आस्रवद्धार (बंध हेतु) __ तत्प्रदोषनिन्हवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावरणयोः ।११। (१) प्रदोष (२) निन्हव (३) मात्सर्य (४) अन्तराय (५) आसादन और (६) उपघात - यहा (ऐसे आत्म परिणाम) ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण कर्म के आस्रव (बंध हेतु) है । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण कर्मों के बंध में जो क्रियाएँ अथवा कार्य निमित्त पड़ते हैं अथवा जिनकी वजह से इन कर्मों का बंधन होता है, इन कार्यों को बताया गया है । दोनों ही कर्मों के बंधहेतु के एक ही हैं, नाम भी वही हैं, किन्तु जब वह ज्ञान (अवबोध अथवा जानने की क्रिया) से सम्बन्धित होते हैं तब ज्ञानावरणीय कर्मबंध में हेतु बनते हैं और देखने की क्रिया (दर्शन) से सम्बन्धित होते हैं तब वे दर्शनावरणीय कर्म का बन्ध कराते हैं । वस्तुतः ज्ञानावरणीय कर्म का कार्य आत्मा के ज्ञान गुण वर आवरण डालना है और.दर्शनावरणीय का कार्य दर्शन गुण में बाधा डालना है । ( ज्ञान और दर्शन दोनों ही सहभावी गुण है)। दर्शन के दूसरे ही क्षण, ज्ञान की अभिव्यक्ति होती है । देखने के तुरन्त बाद, एक भी क्षण का व्यवधान हुए बिना, ज्ञान होता है, यह सभी प्राणियों की नित्य की अनुभूति है, इसी कारण इन दोनों कर्मों के बंधहेतु भी समान ही हैं । सूत्रोक्त बंधहेतु (आस्रवों) का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है (१) प्रदोष - ज्ञान, ज्ञानी एवं ज्ञानी के जो साधन है उनके प्रतिद्वेष या ईर्ष्या भाव रखना । मोक्ष के कारणभूत तत्त्वज्ञान को सुनकर भी उसकी प्रशंसा न करना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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