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आस्रव तत्त्व विचारणा २६५ कुछ शास्त्रों में इन ३९ भेदों में ३ योगों (मन, वचन, काय योग) को सम्मिलित करके ४२ भेद भी आस्रव के माने हैं ।
आस्रव के २० भेद प्रसिद्ध हैं । वे इस प्रकार हैं - (१-५) पाँच आस्रव (मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय, योग) (६-१०) पाँच अव्रत (हिंसा, असत्य, चौरी, अब्रह्म, परिग्रह) (११-१५), पाँच इन्द्रियों का संयम न रखना। (१६-१८) तीन योग (मन, वचन, काय योग) (१९) भाण्ड उपकरण आदि अपना सामान अयतना से उठाना-रखना (२०) सूचीकुशाग्र (सुई-दर्भ) आदि वस्तुओं को अयतना से लेना और रखना ।
_इस प्रकार आस्रवों के विभिन्न अपेक्षाओं के कई भेद हैं; किन्तु वे सभी प्रस्तुत सूत्र में बताये गये भेदों का संक्षेप अथवा विस्तार मात्र है । उन भेदों का प्रमुख कारण अपेक्षा हैं, स्वरूपगत नहीं । आगम वचन -
जे केई खुद्दका पाणा, अदुवां संति महालया । सरिसं तेहि वेरंति असरिसं तियणो वदे ।। एएहिं दोहिं ठाणे हिं ववहारो ण विजई । एएहिं दोहिं ठाणे हिं, अणायारं तु जाणए ॥
. - सूत्रकृतांग, श्रृ. २, अ. ५, गाथा ६-७ (कर्मबन्धस्थ कारणं अपितु वधक स्य तीव्र भावों मंदभावों ज्ञानभावोऽ ज्ञातभावो महावीर्यत्वमल्पवीर्यत्वं चेत्येदपि ।
- शीलांकवृत्ति ((इस संसार में) जो (एकेन्द्रियादि) छोटे जीवहै अथवा जो महाकाय (हाथी, ऊँट, मनुष्य आदि) प्राणी हैं, इन दोनों प्रकार के प्राणियों (की हिंसा से, दोनों) के साथ समानही वैर होता है अथवा समान वैर नहीं होता; ऐसा नहीं कहना चाहिए ।
__ क्योंकि इन दोनों (समान वैर होता है, अथवा समान वैर नहीं होता) एकान्त वचनों से व्यवहार नहीं चलता अतः इन दोनों एकान्त वचनों को अनाचार जानना चाहिए ।
कर्मबन्ध.का कारण वध करने वाले के तीव्रभाव, मंदभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, महावीर्यत्व और अल्पवीर्यत्व हैं ।) आस्रव में विशेषता के कारण -
तीव्रमंदज्ञाताज्ञातभाववीर्याधिकरण विशेषेभ्यस्तद्विशेष : १७।
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