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अजीव तत्त्व वर्णन
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सूत्र ३२ में कहा गया है कि जब स्निग्न्ध और रूक्ष पुद्गल परस्पर स्पष्ट होते हैं- एक-दूसरे का स्पर्श करते हैं, तब उनमें परस्पर बन्ध होता है यानी दोनों एक क्षेत्रावगाह ( एकमेव ) हो जाते हैं ।
यह बन्ध विषयक सामान्य कथन है ।
सूत्र ३३ से ३६ तक बन्ध के अपवाद तथा अन्य विशेषताओं का वर्णन किया गया है ।
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बन्ध के स्पृष्ट, स्पृष्टबद्ध आदि कई भेद हैं । शिथिल, गाढ़, प्रगाढ़ आदि रूप से भी बन्ध कई प्रकार का होता है ।
पुद्गल के आठ स्पर्शो में स्निग्ध और रूक्ष दो प्रकार के स्पर्शो का उल्लेख पिछले सूत्रों में हुआ है । बन्ध में यह दोनों (स्पर्श और रूक्ष) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । दूसरे शब्द में यह भी कहा जा सकता है कि यह दो बन्ध के प्रमुख आधार है ।
यही सामान्य संकेत सूत्र ३२ में दिया गया है ।
सूत्र ३३ में कहा गया कि जिन पुद्गलों में स्निग्धता अथवा रूक्षता का जघन्य अंश होता है, उनमें बन्धन की योग्यता नहीं होती । इसी कारण उनका बन्ध नहीं होता ।
जघन्य का अभिप्राय जिस पुद्गल में स्निग्धता अथवा रूक्षता का एक अविभागी प्रतिच्छेद रह जाता है, वह पुद्गल जघन्य गुणवाला कहा जाता है ।
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जघन्य गुण वाले ऐसे पुद्गल में परस्पर बन्धन की क्षमता नहीं हो पातो। इसी कारण उनका बन्धन नहीं होता ।
किन्तु दो गुण अधिक गुण वाले पुद्गलों का परस्पर बन्ध होता है । बध के समय जो अधिक गुणवाला पुद्गल होता है, वह हीन गुण वाले पुद्गल को अपने रूप में परिणमा लेता है, यानी अपने रूप में उसका परिवर्तन कर लेता है, अपने अन्दर उसे समा लेता है ।
समान गुण वाले पुद्गल जब परस्पर बद्ध होते हैं तो वे परस्पर एकदूसरे को अपने-अपने रूप में परिणमाते हैं ।
एक उदाहरण लीजिए चार स्निग्ध गुण वाले पुद्गल का तीन रूक्ष गुण वाले पुदग्ल के साथ बन्ध हुआ तो स्निग्ध गुणवाला पुद्गल रूक्ष गुण वाले पुद्गल को अपने रूप में परिणमा लेगा, यानी दोनों के सम्मिलन से जो स्कन्ध बनेगा वह स्निग्ध गुणप्रधान होगा ।
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