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२४६ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ५ : सूत्र ३२-३६
(बन्धनपरिणाम दो प्रकार का बताया गया है; यथा- . स्निग्धबन्धन परिणाम और रूक्षबन्धन परिणाम | .
समान स्निग्धता होने पर बन्धन नहीं होता और समान रूक्षता होने पर भी बन्धन नहीं होता । स्कन्धों का बन्ध स्निग्धता और रूक्षता की मात्रा में विषमता होने पर ही होता है।
दो गुण अधिक होने से स्निग्ध का स्निग्ध के साथ बंधन हो जाता है, तथा दो गुण अधिक होने से रूक्ष का रूक्ष के साथ बन्धन हो जाता ह। स्निग्ध का रूक्ष के साथ बन्धन हो जाता है । किन्तु जघन्य गुण वाले का विषम या सम किसी के साथ भी बन्धन नहीं होता ।) बन्ध के हेतु, अपवाद आदि का वर्णन
स्निग्धरूक्षत्वाद् बंधः ।३२। न जघन्य गुणानाम् ।३३। गुणसाम्ये सदृशानाम् ।३४। ,
याधिकगुणानाम् तु ।३५। बंध समाधिौं पारिणामिकौ ।३६ ।
(परमाणुओं का स्कन्धों का) बन्ध स्निग्धता (चिकनाई) और रूक्षता (रूखेपन) से होता है ।
जघन्य गुण (गुणों का अंश) वाले परमाणु में बन्ध नहीं होता।
गुणों के (अंशों के) समान होने पर सदृशों (स्निग्ध का स्निग्ध के साथ और रूक्ष का रूक्ष के साथ) का बन्ध नहीं होता ।
किन्तु दो गुण (अंश) अधिक वाले आदि परमाणुओं का बन्ध होता
बन्ध अवस्था में सम और अधिक गुण (अंश) वाले पुद्गल सम तथा हीन गुण (अंश) वाले पुद्गलों को परिणमाते हैं ।
विवेचन - सूत्र ३२ से ३६ तक में बन्ध का विवेचन किया गया है। बन्ध की योग्यता पुद्गल द्रव्य (परमाणु एवं स्कन्धों) में होती है । इसलिए यह सम्पूर्ण वर्णन पुद्गल से सम्बन्धित है ।
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