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________________ अजीव तत्त्व वर्णन २३९ संघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते । २६ । भेदादणुः।२७। भेदसंधाताभ्यां चाक्षुषा : ।२८ । स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण वाले पुद्गल होते. हैं । शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप (धूप) और उद्योत (चन्द्र का प्रकाश) वाले भी पुद्गल होते हैं. (यह भी पुद्गल की ही पर्यायें हैं.) पुद्गल के दो प्रकार हैं - (१) अणु और (२) स्कन्ध । जुड़ने (संघात) से, टूटने-पृथक-पृथक्, होने (भेद) से तथा जुड़ने और पृथक् होने-दोनों के स्कन्धों की उत्पत्ति होती है । अणु भेद से ही उत्पन्न होता है (संघात से नहीं) । चक्षु इन्द्रिय से दिखाई देने वाला स्कन्ध भेद और संघात दोनों से ही निर्मित होता है । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र २३ से २८ तक में पुद्गल द्रव्य (अस्तिकाय) के गुण-पर्याय और तथा स्कन्धों के बनने की प्रक्रिया बताया बताई गई है। - पुद्गल के गुण . पुद्गल के प्रमुख गुण चार है - (१) स्पर्श (२) रस (३) गन्ध और (४) वर्ण । और इनके अवान्तर भेद बीस हैं । स्पर्श - आठ प्रकार का है - (१) कठिन (२) कोमल (मृदु) (३) भारी (गुरु) (४) हलका (लघु), (५) शीत (ठण्डा), (६) उष्ण (गर्म), (७) चिकना (स्निग्ध) और (८) रूखा (रूक्ष) । रस - पाँच प्रकार का है - (१) चरपरा (तिक्त) (२) कडुआ (कटु) (३) कसैला (कषाय) (४) खट्टा (अम्ल) और (५) मीठा (मधुर) । . ___गन्ध - के दो प्रकार - (१) सुरभि (सुगन्ध) (२) दुरभि (दुर्गन्ध)। वर्ण - के पाँच भेद - (१) कृष्ण (काला) (२) नील (नीला) (३) रक्त (लाल) (४) पीत (पीला) और (५) शुक्ल (श्वेत-सफेद) । __उपर्युक्त स्पर्श आदि चार गुण प्रत्येक पुद्गल परमाणु तथा स्कन्ध में होते हैं और इन बीस भेदों अथवा पर्यायों में से यथासमंभव होते हैं । और इस बीस भेदों के भी उत्तरभेद असंख्यात होते हैं । उदाहरण के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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