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________________ २३४ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ५ : सूत्र १७-२२ परस्परोपग्रहो जीवानाम् । २१ । वर्तना परिणामः । क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य |२२| (गतिमान पदार्थों की) गति में और ( स्थितिमान पदार्थों की) स्थिति में उपग्रह करना (उदासीन निमित्त बनना) धर्म और अधर्म द्रव्य का उपकार ( गुण या प्रयोजन अथवा लक्षण ) हैं । अवगाह (स्थान) देना आकाश का गुणं अथवा लक्षण है । शरीर, वचन, मन और प्राणापान पुद्गल द्रव्य का उपकार है । तथा सुख, दुःख जीवन और मरण में निमित्त बनना भी पुद्गल द्रव्य का ही उपकार है । परस्पर एक-दूसरे के लिए निमित्त बनना जीव का उपकार है । काल का उपकार वर्तना, परिणाम, क्रिया तथा परत्व - अपरत्व है । विवेचन प्रस्तुत सूत्र १७ से २२ तक में धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल, जीव और काल - इन छह द्रव्यों के गुण अथवा लक्षण बताये गये है । धर्म और अधर्म यह दोनों द्रव्य गतिमान और स्थितिमान द्रव्यों 1 - के गमन और स्थिरत्व में उदासीन रूप से सहायक है । धर्म और अधर्म का अस्तित्व - विचार सिर्फ जैन दर्शन की ही विशेषता I है । संसार के किसी भी अन्य धर्म-दर्शन ने इनके अस्तित्व पर विचार नहीं किया । अपितु भगवान महावीर के मदुक श्रावक के आख्यान से स्पष्ट है कि तत्कालीन अन्य धर्मावलम्बी पंच अस्तिकायों ( धर्म-अधर्म विशेष रूप से) के सिद्धान्त पर, जिनेन्द्र वाणी पर भाँति-भाँति के आक्षेप लगाते थे । किन्तु आधुनिक विज्ञान ने इसे स्वीकार किया है । और इसे Ether नाम दिया है । वैज्ञानिकों ने ईथर का जो वर्णन किया वह जैन आगमो में वर्णित धर्मद्रव्य के वर्णन से मिलता-जुलता है । Hollywood R. and T. Instruction Lesson 2 What is Ether Jain Education International The best that anyone could do would be to say that Ether is an invisible body.... is a something that is not a solid, nor liquid, nor gaseous, nor anything else which can be observed by us physically. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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