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________________ ऊर्ध्वलोक-देवनिकाय २१७ योजन का प्रमाण उपरोक्त तालिका में जो योजन का प्रमाण दिया गया है, वह उत्सेधांगुल के अनुसार है । किन्तु शाश्वत वस्तुओं; जैसे नरक-पृथ्वी के कांडों, देवविमानों, लोक की, मध्य लोक की लम्बाई-चौड़ाई आदि का माप प्रमाणांगुल से किया जाता है । यह प्रमाणांगुल का माप इस प्रकार निकाला जाता है १००० उत्सेधांगुल= १ प्रमाणांगुल । इसका सीधा सा अभिप्राय यह है कि प्रमाण योजन, उत्सेधयोजन का हजार गुना होता है - १ प्रमाण योजन =१००० उत्सेध योजन उत्सेध योजन का माप आधुनिक गणित प्रणाली १००/११ अथवा ९, १/११ मील होता है और इस गणित के अनुसार प्रमाण योजन का माप ९०९०.९ मील होता है । रज्जु का. माप रज्जु का माप कितना है, यानी एक रज्जु कितना लम्बा है, इसके लिए आगमों में असंख्यात कोटा-कोटी योजन शब्द आया है यानी असंख्यात कोटा-कोटी(करोड़xकरोड़) योजन (प्रमाण योजन) विस्तृत एक रज्जु होता है। रज्जु के मान के विषय में जैनतत्वप्रकाश (स्व. पूज्य अमोलक ऋषिजी म. द्वारा लिखित) में एक दृष्टान्त दिया गया है । वह इस प्रकार है - पल्या तीन प्रकार के होते हैं - (१) व्यवहारपल्य, (२) उद्धारपल्य, (३) अद्धापल्य । • व्यवहार पल्य - ४.१३ x (१०)४६ वर्ष । इसे अविभागी समयों में बदला जा सकता है ।। उद्धारपल्य - ४.१३ x (१०)४४ x जघन्ययुक्त असंख्यात x १०७ वर्ष । यहाँ जघन्ययुक्त असंख्यात का मान गणना विधि से प्राप्त हो जाता अद्धापल्य - ४.१३ x (१०)४४ x (जघन्ययुक्त असंख्यात) वर्ष। यहाँ अज्ञात मध्यम संख्यात की अनिभृतता को छोड़कर इन सभी को समय राशि में बदला जा सकता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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