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________________ ऊर्ध्वलोक-देवनिकाय २१५ पल्योपम और सागरोपम का प्रमाण भगवती सूत्र, शतक ६, उद्देशक ७, सूत्र ६-८ में बताया गया है । उसके आधार पर यहाँ परिचय दिया जा रहा है । पल्योपम का मापपरमाणु' = पुद्गल का अत्यन्त सूक्ष्मातिसूक्ष्म ___ अविभागी अंश अनन्त सूक्ष्म परमाणु ____ = एक व्यवहार परमाणु अनन्त व्यवहार परमाणु ____ = उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका ८ उत्श्लक्ष्णश्लक्षिणका ___ = १श्लक्ष्णश्लक्षिणका ८ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका ___ = १ ऊर्ध्वरेणु ८ ऊर्ध्वरेण ___= १ त्रसरेणु ८ त्रसरेणु ___ = १ रथरेणु ८ रथरेणु ____ = उत्तरकुरू-देवकुरु के मनुष्यों का १ बालाग्र देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों का ८ बालाग्र J= हरिवर्ष रम्यकवर्ष के मनुष्यों १ बालाग्र हरिवर्ष-रम्यक्वर्ष के मनुष्यों का ८ बालाग्र ) हैमवत-हैरण्यवत के मनुष्यों का १ बालाग्र हैमवत हैरण्यवत के 1 = पूर्व-पश्चिम महाविदेह के मनुष्यों का बालाग्र मनुष्यों का.८ बालाग्र । पूर्व पश्चिम महाविदेह के . = भरत-ऐरवत वर्ष के मनुष्यों का १ बालाग्र . मनुष्यों का ८ बालाग्र । भरत-ऐरवत के मनुष्यों का ८ बालाग्र J । = २ लिक्षा (लीख) ल १. अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी जिसका छेदन-भेदन न हो सके, ऐसे अत्यन्त सूक्ष्मातिसूक्ष्म पुद्गलपरमाणु को जैनदर्शन में सभी प्रमाणों का आदि प्रमाण माना गया है । यह भी अत्यन्त तीव्र शस्त्रों, तरंगों, किरणों आदि से नही छेदा जा सकता । २. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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