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२१० तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ४ : सूत्र ३३-४२
कुछ अधिक (साधिक) दो सागरोपम की आयु है । .
पहले-पहले (स्वर्ग एवं विमानों) की उत्कृष्ट आयु आगे-आगे (स्वर्ग और विमानों) की जघन्य आयु स्थिति हैं ।)
विवेचन - सभी (बारह) कल्पों और ९ ग्रैवेयक तथा ५ अनुत्तर विमानों के देवों की जो उत्कृष्ट और जघन्य आयु आगमोक्त उद्धरण में बताई गई है, वही इन सूत्रों में वर्णित है ।
सूत्रकार ने सूत्र ३३ से ३८ तक उत्कृष्ट आयु स्थिति का वर्णन किया है और ३९ से ४२ तक में जघन्य आयु स्थिति का ।
सूत्र ३७ में सूत्रकार ने लाघव की दृष्टि से ७ सागरोपम को आधार मानकर आगे के देवों की आयु स्थिति का वर्णन किया है ।
. सात सागरोपम की (उत्कृष्ट) आयु सानत्कुमार स्वर्ग के देवों की होती है। उनमें विशेष (कुछ) जोड़कर साधिक सात सागरोपम की आयु माहेन्द्र देवलोक के देवों की होती है। सात सागरोपम में तीन सागरोपम मिलाकर दस सागरोपम की उत्कृष्ट आयु ब्रह्मलोक के देवों की होती है।
इसी प्रकार आगे भी समझ लेना चाहिए । यह सूत्रकार का सूत्ररचना कौशल है । आगमोक्त उद्धरण में सब देवों की उत्कृष्ट और जघन्य आयु सरल एवं स्पष्ट शब्दों में बता दी गई है । आगम वचन -
सागरोवममेगं तु, उक्कोसेण वियाहिया । पढमाए जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया । १६०। तिण्णेव सागरा उ. उक्कोसेण वियाहिया । दोच्चाए जहन्नेणं, एगं तु सागरोवमं ।१६१ ।
___-उत्तरा ३६/१६०/-६१ एवं जा जा पुव्वस्स उक्कोसठिइ अत्थि ता ता परओ परओ जहण्णठिई णे अव्वा ।
(प्रथम नरकभूमि (के नारकियों) की जघन्य आयु दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट आयु एक सागर की होती है।
दूसरे नरक (के नारकियों)की जघन्य आयु एक सागर और उत्कृष्ट आयु तीन सागर है ।
इसी प्रकार पूर्व-पूर्व के नरकों (के नारिकयों) की जो उत्कृष्ट
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