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________________ सप्त सानत्कुमारे । ३६। विशेषत्रिसप्तदशैकादशत्रयोदशपंचदशभिरधिकानि तु । ३७। आरणाच्युतादूर्ध्वमेकै केन नवसु ग्रैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धे च । ३८। अपरा पल्योपमधिकं च सागरोपमे |४०| अधिकेच ।४१। ऊर्ध्वलोक - देवनिकाय २०९ । ।३९। परत : परतः पूर्वा पूर्वाऽनन्तरा । ४२ । (सौधर्म आदि देवलोकों (के देवों) की आयु क्रमशः बताई जाती है। (१) सौधर्म (स्वर्ग) में दो सागरोपम की आयुस्थिति है । (२) ऐशान में दो सागरोपम से कुछ अधिक (देवों की) आयु है। (३) सानत्कुमार (स्वर्ग) के (देवों) की आयु सात सागरोपम है । (४) माहेन्द्र (स्वर्ग) से आरण - अच्युत (स्वर्ग) तक क्रमशः कुछ अधिक सात सागरोंपम । (५) तीन, अधिक सात सागरोपम (३+७= १० सागर ) (६) सात, अधिक सात सागरोपम ( ७+७=१४ सागर) (७) दस, अधिक सात सागरोपम (१०+७ =१७ सागर) (८) ग्यारह, अधिक सात सागरोपम ( ११+७=१८ सागर) (९-१०) तेरह अधिक सात सागरोपम ( १३+७=२० सागर) (११-१२) पन्द्रह, अधिक सात सागरोपम (१५+७=२२ सागर) (देवों की) आयु है।" आरण- अच्युत (स्वर्ग) से ऊपर नौग्रैवेयक, चार विजय आदि (अनुत्तर विमान) और सर्वार्थसिद्ध ( महाविमान) के देवों की आयु अनुक्रम से एक-एक सागरोपम अधिक कही गई है । Jain Education International जघन्य (अपरा का वाच्यार्थ ) आयु पल्योपम और कुछ अधिक पल्योपम है । दो सागरोपम की आयु है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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