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________________ ऊर्ध्वलोक-देवनिकाय २०३ सारस्वत, आदित्य, वन्हि, वरूण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, आग्नेय और रिष्ट यह सब (९) लोकान्तिक देव हैं । लोकान्तिक देव वर्णन - ब्रह्मलोकालया लोकान्तिकाः । २५। . सारस्वतादित्यवन्हिअरुणगर्दतोयतुषियाव्याबाधमरूतोऽरिष्टाश्च । २६। ब्रह्मलोक जिन देवों का आलय-स्थान है, वे लोकान्तिक देव कहलाते हैं । लोकान्तिक देव यह है - (१) सारस्वत, (२) आदित्य, (३) वन्हि, (४) अरूण, (५) गर्दतोय, (६) तुषित, (७) अव्याबाध, (८) मरुत और (९) अरिष्ट । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र २५ और २६ में लोकान्तिक देवों का आलयस्थान और उनके ९ प्रकार बताये गये हैं । यहाँ जिज्ञासु के मस्तिष्क में एक जिज्ञासा उठती है कि जब लोकान्तिक देव पाँचवे ब्रह्मलोक कल्प (स्वर्ग) में ही रहते हैं तो उनके लिए अलग से यह सूत्र क्यों रचे गये ? फिर देवों के जो १९८ भेद (९९ पर्याप्त और ९९ अपर्याप्त) बताये गये हैं, वहाँ भी १२ कल्पोपन्न देवों के अलावा ९ प्रकार के लोकान्तिक देव अलग से गिने गये हैं । तो इस पृथकता का क्या कारण समाधान यह है कि पृथकता का कारण है, लोकान्तिक देवों की विशिष्टताएँ । पाँचवें कल्प के आलय में रहते हुए भी वे ब्रह्मलोक कल्प के अन्य देवों से विशिष्ट हैं । उनकी विशिष्टता दो प्रकार की है - प्रथम निवास स्थान की और दूसरी अनुभाव की । निवासस्थान - मध्यलोक के असंख्यात द्वीप-समुद्रों में एक अरूणवर नाम का द्वीप है । वहाँ से अत्यन्त सघन अन्धकार पटल निकलता है । वह ऊपर उठता हुआ पाँचवें देवलोक के नीचे तक पहुंचकर आठ भागों में विभाजित हो गया है - चार दिशाओं और चार विदिशाओं में । यह आठ भाग कृष्णराजियाँ कही गई है ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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