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________________ २०२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ४ : सूत्र २३-२४ (सौधर्म और ईशान कल्प (के देवों) के कितनी लेश्या होती है ? गौतम! उनके केवल एक तेजोलेश्या ही होती है । सानत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में एक पद्मलेश्या होती है। ब्रह्मलोक में भी पद्मलेश्या ही है । शेष कल्पों में केवल शुक्ललेश्या होती है । अनुत्तर विमानवासी (देवों में) परमशुक्ल लेश्या होती है ।) कप्पेपवण्णगा बारसविहा .. -प्रज्ञापना, प्रथम पद, सू. ४९ ग्रैवेयकों से पहले के) कल्पोपपन्न देव बारह प्रकार के कहे गये हैं ।) वैमानिक देवों की लेश्या और कल्प का सीमा निर्धारण - पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु ।२३। प्राग्गै वेयकेभ्यः कल्पाः ।२४। (आदि के) दो पीत (तेजो) लेश्या तथा (उनके आगे के) तीन में पद्मलेश्या और (आगे के ) शेष (समस्त) कल्पों में शुक्ललेश्या (वाले देव) ग्रैवेयकों से पहले-पहले (के स्वर्गों को) कल्प कहा जाता है । विवेचन - जैसा कि आगमोक्त उद्धरण से स्पष्ट है - पहले-दूसरे स्वर्ग के देवों की तेजोलेश्या है; तीसरे, चौथे, पांचवें स्वर्ग के देवों की पद्मलेश्या है और शेष छठे से आगे के स्वर्गों के देवों की शुक्लेश्या है तथा अनुत्तर विमान वाले देवों की परम शुक्ललेश्या है । विशेष - लेश्याओं के स्वरूप का विवेचन और कल्प का विशद विवेचन इसा ग्रन्थ के पिछले पृष्ठों में किया जा चुका है । आगम वचन - बंभलोए कप्पे... लोगंतिआ देवा पण्णत्ता... - स्थानांग, स्थान ८, सूत्र ६२३ (ब्रह्मलोक कल्प के अन्त में रहने वाले लोकान्तिक देव कहलाते है।) सारस्सयमाइचा वण्हीवरुणा य गद्दतोया य । तुसिया अव्वाबाहा अग्गिचा चेव रिटाए । - भगवती, शतक ६, उ. ५; स्थानांग सू० ६८४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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