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ऊर्ध्वलोक-देवनिकाय १९५ (६) लान्तक कल्प - ब्रह्मलोक स्वर्ग से असंख्यात योजन (१/ २ राजू) ऊपर जाने पर छठा लान्तक कल्प आता है । इसमें पाँच प्रतर तथा ५० हजार विमान हैं । इसका आकार पूर्णचन्द्र के समान है ।
(७) महाशुक्र कल्प - यह लान्तककल्प से अंसख्यात योजन (१/ ४ राजू) ऊपर अवस्थित हैं । इसका आकार पूर्ण चन्द्र जैसा है । इसमें चार प्रतर और ४० हजार विमान है ।
(८) सहस्त्रारकल्प - यह महाशुक्र कल्प से अंसख्यात योजन (१/ ४ राजू) ऊपर अवस्थित हैं । इसका भी आकार पूर्ण चन्द्र जैसा है । इसमें चार प्रतर और ६००० विमान है ।
(९-१०) आणत और प्राणत कल्प - यह दोनों कल्प सहस्त्रार कल्प से अंसख्यात योजन (१/४ राजू) ऊपर समश्रेणी में अवस्थित हैं । ये दोनों ही लगड़ाकर (खड़े अर्द्ध चन्द्र का आकार) संस्थान वाले हैं । दोनों मिलकर ही पूर्ण चन्द्र आकार के दिखाई देते हैं । इन दोनों में मिलाकर चार प्रतर और ४०० विमान हैं ।
इन दोनों कल्पों का एक ही इन्द्र है, जिसका नाम प्राणत है ।
(११-१२) आरण-अच्युत कल्प - आणत और प्राणत कल्प से असंख्यात योजन (१/२ राजू) ऊपर जाने पर ग्यारहवें और बारहवें आरण और अच्युत कल्प अवस्थित हैं । यह दोनों भी लगड़ाकार हैं । इन दोनों में मिलकर चार प्रतर और ३०० विमान हैं ।
इन दोनों कल्पों का भी अच्युत नाम का एक ही इन्द्र है ।। कल्पातीत विमान १४ हैं - ९ नवग्रैवेयक और ५ अनुत्तर विमान ।
नवग्रैवेयक - तीन-तीन की त्रिक में तीन त्रिक है- निचली त्रिक, मध्यम त्रिक और ऊपरी त्रिक ।
बारहवें देवलोक से असंख्यात योजन ऊपर जाने पर नवग्रैवेयक की पहली (सबसे नीचे की) त्रिक आती है । इनके नाम १. भद्र २. सुभद्र ३. सुजात हैं । इस त्रिक में १११ विमान हैं ।
यहाँ से असंख्यात योजन ऊपर दूसरी (मध्यम) त्रिक है । इसके नाम ४. सुमानस, ५. प्रियदर्शन, ६. सुदर्शन हैं. इसमें १०७ विमान हैं ।
इससे असंख्यात योजन ऊपर तीसरी (उपरिम) त्रिक हैं । इनके नाम ७. अमोघ ८. सुप्रतिबुद्ध ९. यशोधर हैं । इस त्रिक में १०० विमान हैं ।
इन तीनों त्रिकों में ९ प्रतर है ।
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