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१९२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ४ : सूत्र १३-१६
इनके अतिरिक्त क्रिस्टाइल नाम के गणित विद्वान भी पृथ्वी - भ्रमण के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करते ।
न्यूयार्क की दी फोर्टियन लॉ सोसायटी के सदस्य भी पृथ्वी की गतिशीलता को स्वीकार नहीं करते ।
'अर्थ इज नाट ए ग्लोब' के अमेरिकन लेखक ने अपनी इस पुस्तक में अनेक युक्तियों से सिद्ध किया है कि पृथ्वी स्थिर हैं । .
इसी प्रकार के विचार अन्य अनेक विद्वानों ने व्यक्त किये हैं ।
उपरोक्त संपूर्ण विवेचन से स्पष्ट है कि वैज्ञानिकों का भी 'पृथ्वी भ्रमणशील' है। यह अन्तिम मत नहीं है ।'
. फिर भी आश्चर्य है कि स्कूल के बच्चों को यही पढ़ाया जा रहा है कि 'पृथ्वी भ्रमणशील है।'
इस चर्चा को आगे न बढ़ाकर एक चिन्तक के शब्दों को उद्धृत कर देना काफी होगा -
"अभी विज्ञान शोध और प्रयोग के स्तर पर है । बहुत सम्भव है कि जब विज्ञान की शोध पूर्ण हो जाय तो वह उसी स्थान पर पहुंच जाय, जहाँ धर्माचार्य पहले से ही विराजमान है और वह भी इन्ही की भाषा बोलने लगे।' आगम वचन -
वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-कप्पोपवण्णगा य कप्पाइया य ।
- - प्रज्ञापना, प्रथम पद, सू. ५० (वैमानिक (देव) दो प्रकार के होते हैं, - (१) कल्पोपपन्न (२) कल्पातीत) ईसाणस्स कप्पस्स उप्पिं सपक्खि.. इचाइ
- प्रज्ञापना, पद २, वैमानिक देवाधिकार (ईशानकल्प से ऊपर-ऊपर बाकी सब रचना समान है। )
सोहम्म ईसाण सणं कु मार माहिन्द बंभलोय लंतग महासुक्क सहस्सार आणय पाणय आरण अच्चुत हेट्ठिमगेवेनग मज्झिमगेवेजग उपरिमगेवेज्जग विजय वेजयन्त जयन्त अपराजिय सव्वट्ठसिद्ध देवा य - प्रज्ञापना, पद ६, अनुयोगद्वार सू. १०३, औपपातिक, सिद्धाधिकार
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