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ऊर्ध्वलोक-देवनिकाय १८७ गहरे गड्ढ़े थे और कहीं मीलों ऊँचे टीले । पानी बरसने से गड्ढे सागर आदि बन गये और ऊँचे टीले पर्वत बन गये ।
फिर परिस्थिति अनुकूल होने पर वनस्पति उत्पन्न हुई, पानी पर काई जमी, एककोषीय जीव अमीबा (Amoeba) अस्तित्व में आये और फिर बहुकोषीय जीवों की उत्पत्ति हुई । पहले कृमि (लट आदि Creatures) फिर चीटी आदि तब बिच्छू, मक्खी जैसे जीव, पृथ्वी और पानी दोनों में जीवित रह सकने वाले कच्छप आदि जीवधारी अस्तित्व में आये ।
तत्पश्चात् रेंगने वाले प्राणि (Reptiles-सर्प, केंचुआ आदि) पैरों पर चलने वाले प्राणी (स्तनधारी-Mammals- गाय आदि) - यानी पशु जगत (Animals) का विकास हुआ । इनमें से कुछ प्राणियों ने अगले दो पैरों को उठाकर उड़ने का प्रयास किया तो उनके पाँव परों मे विकसित हो गये और वे पक्षी (Birds) कहलाये ।
भूमि पर चलने वाले जीवधारी (पशु) विकास करते-करते चिंपाजी (ape) आदि बने, फिर वनमानुष और फिर मनुष्य अस्तित्व में आये ।
यह हुई पृथ्वी पर जीवन-विकास कहानी ।।
पृथ्वी की गति के बारे में वैज्ञानिकों की यह मान्यता है कि धीरे धीरे पृथ्वी का परिपथ (सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने का मार्ग) बढ़ता जा रहा है और पृथ्वी सूर्य से दूर होती जा रही है । आज से कई हजार वर्ष पहले पृथ्वी सूर्य का चक्कर २७० दिन में लगा लेती थी, अब ३६५, १/४ दिन में लगाती है और एक दिन ऐसा आयेगा जबकि इससे चौगुना समय लगा करेगा। यानी वर्ष के दिन चार गुने हो जायेंगे ।
. और फिर इस पर जीवन का अन्त हो जायेगा, यह नीहारिका के समान शून्य (Bare land) हो जायेगी ।
इसी प्रकार पृथ्वी प्रारम्भ में अपनी धुरी पर ४ घण्टे में घूम जाती थी। उस समय २ घण्टे का दिन और २ घण्टे की रात होती थी । अब २४ घण्टे में घूमती है और काफी लम्बी अवधि के बाद इसे १४०० घण्टे लगा करेंगे यानी ७०० घण्टो का दिन और ७०० घण्टों की रात हुआ करेंगी ।
प्रारम्भ में वैज्ञानिकों की मान्यता थी कि पृथ्वी की उत्पत्ति
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'जन दर्शन और आधुनिक विज्ञान' पुस्तक के आधार से ।
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