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________________ ऊर्ध्वलोक-देवनिकाय १८५ ३० मुहूर्त = १ अहोरात्र (२४ घंटे-एक रात-दिन) १५ अहोरात्र = १ पक्ष (Fortnight) २ पक्ष = १ मास (month) २ मास = १ ऋतु ३ ऋतु = १ अयन (छह माह) २ अयन = १ संवत्सर (वर्ष-year) ५ संवत्सर = १ युग ८४ लाख संवत्सर = १ पूर्वांग इसी प्रकार यह गणना संख्यात, असंख्यात, अनन्त, अनन्तानन्त तक बढ़ती चली गई है । इस समस्त व्यवहार-काल गणना का आधार चन्द्र-सूर्य का चार अथवा भम्रण हैं । स्थिर ज्योतिष्क - जैसा कि सूत्र १६ में बताया गया है - मनुष्यलोक से आगे के द्वीप समुद्रों में ज्योतिषी देव स्थिर हैं, अर्थात् वे निश्चल हैं, परिभ्रमण नहीं करते हैं । इसी कारण वहाँ मुहूर्त, घुड़ी, दिन-रात आदि काल-व्यवहार नहीं होता । जहाँ चन्द्र होता है वहाँ दूधिया चांदनी फैली रहती है और जहां सूर्य का प्रकाश होता है वहाँ सुनहरा प्रकाश विकीर्ण होता रहता है । ___यहाँ (मनुष्यलोक) की अपेक्षा ज्योतिष्क देवों का प्रकाश भी कम है और विमानों का परिमाण भी आधा है । साथ ही वह स्थिर है, न घटता है, न बढ़ता है । स्थिर रहने के कारण वहां ग्रहण आदि भी नहीं होते । वहां उनका प्रकाश एक लाख योजन तक फैलता है और स्थिर रहता है । . सम्पूर्ण ज्योतिष्क देवों की संख्या - जैसा कि तीसरे अध्याय में बताया जा चुका हैं मध्यलोक में असंख्यात द्वीपसमुद्र हैं । अतः सूर्य, चन्द्र आदि ज्योतिष्क देव भी असंख्यात ही हैं । इस प्रकार ज्योतिष्क देवों का वर्णन पूरा हुआ । आधुनिक विज्ञान की भूगोल खगोल सम्बन्धी मान्यताएं आधुनिक युग में विज्ञान का प्रचार काफी है । वैज्ञानिकों ने पृथ्वी और ज्योतिर्लोक सम्बन्धी काफी खोजें भी की हैं । ज्योतिर्लोक सम्बन्धी खोजो को उन्होंने अन्तरिक्ष विज्ञान नाम दिया है । यद्यपि वैज्ञानिक शोधे अभी अन्तिम नहीं है । विज्ञान स्वयं ही अनु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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