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________________ १८२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ४ : सूत्र १३-१६ ज्योतिष् चक्र की अवस्थिति - पाँचो प्रकार के ज्योतिष्क देव जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के समतल भूमिभाग से ऊर्ध्वदिशा मे ७९० योजन से लेकर ९०० योजन तक हैं । साथ ही मेरुपर्वत से ११२१ योजन दूर है । इसका अभिप्राय यह है कि सभी ज्योतिषी देव मेरुपर्वत की परिधि से ११२१ योजन दूर रहकर ही मण्डलाकार गति में भ्रमण करते हुए मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा देते रहते हैं । मेरु के समतल भूमिभाग (पृथ्वी) से ७९० योजन ऊपर ताराओं के विमान हैं । (यद्यपि ये अनियतचारी हैं, कभी चन्द्र-सूर्य के ऊपर तो कभी नीचे गति करते हैं; किन्तु ये चन्द्र-सूर्य तथा ग्रहों से सदैव १० योजन दूर ही रहते हैं और ७९० योजन से नीचे कभी नहीं आते। ) ___ मेरु के समतल (पृथ्वी) से सूर्य का विमान ८०० योजन ऊपर है, चन्द्रमा का विमान ८८० योजन, नक्षत्रों के विमान ८८४ योजन, बुध (ग्रह) का विमान ८८८ योजन, शुक्र का विमान ८९१ योजन, बृहस्पति का विमान ८९४ योजन, मंगल का विमान ८९७ योजन और शनैश्चर का विमान ९०० योजन की ऊँचाई पर है । इस प्रकार सम्पूर्ण ज्योतिष् चक्र ११० योजन (९००-७९०) में फैला हुआ है । ज्योतिष्ककाय का कारण - यह सम्पूर्ण ज्योतिष्कदेव और उनके विमान अत्यन्त प्रकाशमान होते हैं । उनके शरीर की प्रभा ज्योति के स्थान दीप्त हैं तथा उनके विमान से दिग्मण्डल ज्योतित होते हैं, इसी कारण इन्हें ज्योतिष्क देव कहा गया है ।। ज्योतिष्क देवों के चिन्ह - ज्योतिष्क देवों के चिन्ह उनके मुकुट में होते हैं, उनसे उनकी पहचान होती है । यथा -सूर्य के मुकुट में सूर्य मण्डल का चिन्ह होता है और चन्द्रमा के मुकुट में चन्द्र मण्डल का । इसी प्रकार विभिन्न ग्रह, नक्षत्र और तारे तथा प्रकीर्णक देवों के मुकुटों में भी इन-इनके मण्डलों के चिन्ह होते हैं । गति सहायी देव - यद्यपि सूर्य-चन्द्र आदि देवों के विमान स्वयं ही स्वभावतः अपने-अपने मंडल में नियमित रूप से गति करते रहते हैं, उन्हें गति के लिए किन्हीं भी देवों की सहायता की न अपेक्षा होती हैं, न आवश्यकता। फिर भी आभियोग्य (सेवक) जाति के देव अपने जातिगत स्वभाव के कारण उनके विमानों के नीचे लगे रहते हैं और मन में यह भाव रखते है कि हम इस विमान को चला रहे हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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