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________________ ऊर्ध्वलोक-देवनिकाय १८१ ज्योतिष्क देव ज्योतिष्का-सूर्याश्चन्द्रमसो गृहनक्षत्रप्रकीर्णतारकाश्च ।१३। मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके ।१४। तत्कृतः कालविभाग : ।१५। बहिरवस्थिता : । १६ । ज्योतिष्क निकाय के पाँच भेद हैं (१) चन्द्र (२) सूर्य (३) ग्रह (४) नक्षत्र और (५) तारा । यह (पाँचों ज्योतिष्क निकाय) नित्य गमन करते हैं और (मनुष्य क्षेत्र में) मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा (मण्डलाकार रूप में ) करते रहते हैं । उन (गतिशील ज्योतिष्कों) के द्वारा काल का विभाग हुआ है । यह (ज्योतिष्क निकाय) मनुष्य क्षेत्र से बाहर स्थिर हैं । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र १३ से १६ तक में ज्योतिष्क देवों के नाम, उनके भ्रमण तथा भ्रमण के कारण काल विभाग एवं मनुष्य क्षेत्र के बाहर उनके स्थिर रहने का वर्णन हुआ है । ज्योतिष्क देवों के भेद - ज्योतिष्क देव पाँच प्रकार के हैं -चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा (प्रकीर्णक) । चन्द्र और सूर्य के बारे में तो सभी को विदित है । ग्रह हैं, बुध, शुक्र, बृहस्पति, मंगल, शनैश्चर और केतु । इनके अतिरिक्त सूर्यप्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थों में ८८ महाग्रहों के भी नाम गिनाये गये है। ___ नक्षत्र २८ है (१) अभिजित (२) श्रवण (३) धनिष्ठा (४) शतभिषक (५) पूर्वाभाद्रपद (६) उत्तराभाद्रपद (७) रेवती (८) अश्विनी (९) भरणी (१०) कृत्तिका (११) रोहिणी (१२) मृगशीर्ष (१३) आर्द्रा (१४) पुनर्वसु (१५) पुष्य (१६) आश्लेषा (१७) मघा (१८) पूर्वाफाल्गुनी (१९) उत्तराफाल्गुनी (२०) हस्त (२१) चित्रा (२२) स्वाति (२३) विशाखा (२४) अनुराधा (२५) ज्येष्ठा (२६) मूल (२७) पूर्वाषाढ़ा (२८) उत्तराषाढ़ा । तारा और प्रकीर्णक यह अनियतचार - भ्रमण करने वाले हैं, कभी ये सूर्य और चन्द्रमा के नीचे गति करते हैं और कभी ऊपर गति करते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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