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________________ १७२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ४ प्रकार के देव कभी आवासों और कभी भवनों में रहते हैं । आवास और भवन में थोड़ा अन्तर हैं । नाना प्रकार के रत्नों की प्रभा से उद्दीप्त रहने वाले शरीर प्रमाण के अनुसार बने हुए महामण्डप आवासा कहलाते हैं । बाहर से गोल, भीतर से चौकोर और नीचे के भाग के कमल कर्णिका के आकार में बने हुए मकानों को भवन कहा गया है । 'कुमार' संज्ञा का हेतु भवनवासी देवों के पीछे 'कुमार' शब्द लगा हुआ है, यथा- असुरकुमार, नागकुमार आदि । यह शब्द निरर्थक नहीं है, अपितु इन देवों की विशेष प्रवृत्ति को सूचित करता है । यह दशों प्रकार के देव 'कुमार' के समान मनोहर, सुकुमार तथा क्रीड़ाप्रिय होते हैं, इनकी गति मृदु व लुभावनी होती है। इन्ही कारणों से इनके नामों के साथ 'कुमार' शब्द जुड़ा है । (६) पवनकुमार इनका चिन्ह अश्व है । (१) असुरकुमार इनका शरीर घनगम्भीर, सुन्दर कृष्णवर्ण, महाकाय होता है । सिर पर मुकुट होता है। इनका चिन्ह चूड़ामणि रत्न है। (२) नागकुमार ये सिर और मुख भाग में अधिक सुन्दर होते है । अधिक श्याम वर्ण वाले और ललित गति वाले हैं । इनका चिन्ह सर्प है । इसका चिन्ह वज्र है । इनका शरीर उज्ज्वल (३) विद्युत्कुमार प्रकाशशील शुक्ल वर्णवाला है । (४) सुपर्णकुमार इनका चिन्ह गरूड़ है । इनकी ग्रीवा और वक्षस्थल अधिक सुन्दर होते हैं । वर्ण उज्ज्वल श्याम होता है । (५) अग्निकुमार यह प्रमाणोपेत मानोन्मान दैदीप्यमान शुक्ल वर्ण वाले होते हैं । इनका चिन्ह घट है । इनका सिर स्थूल और शरीर गोल होता है । - - Jain Education International - - : सूत्र ११-१२ - - (७) स्तनित कुमार यह चिकने और स्निग्ध शरीर वाले होते हैं । इनके शरीर का रंग काला होता है। गम्भीर प्रतिध्वनि और महाघोष करते हैं । इनका चिन्ह वर्धमान सकोरा संपुट है । 1 - - (८) उदधिकुमार में अधिक सुन्दर तथा श्यामवर्णी होते हैं । (९) द्वीपकुमार इनका चिन्ह सिंह है । वक्षस्थल, स्कन्ध और हस्तस्थल में अधिक सुन्दर होते हैं । इनका चिन्ह मकर है । ये जंघा और कटिभाग For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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