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________________ जीव-विचारणा ९९ इन्द्रिय का लक्षण - आत्मा अथवा जीव को इन्द्र कहा जाता है और उसके जो चिन्ह हैं, वे इन्दियाँ कहलाती हैं । इन चिन्हों अथवा इन्द्रियों से संसारी जीव की पहचान होती है, क्योंकि कोई भी संसारी जीव इन्द्रियों से रहित नहीं है । एक से लेकर पाँच तक इन्द्रियाँ सभी संसारी जीवों के होती हैं । आगम वचन - इन्दिया...दुविहा पण्णत्ता---दव्विंदिया य भाविंदिया । - प्रज्ञापना पद १५, उ. १, (इन्द्रियाँ दो प्रकार की कही गई है - (१) द्रव्येन्द्रिय (२) भावेन्द्रिय इन्द्रियों के भेद - द्विविधानि । १६। प्रत्येक इन्द्रिय दो-दो प्रकार की है । विवेचन - यह सभी (पाँचों) इन्द्रियों के दो-दो भेद हैं । अर्थात प्रत्येक इन्द्रिय दो प्रकार की है - (१) द्रव्येन्द्रिय और (२) भावेन्द्रिय । आगम वचन - गोयमा ! पंचविहे इंदियउवचए पण्णत्ते गोयमा ! पंचविहा इंदियणिवत्तणा पण्णत्ता - प्रज्ञापना पद १५, उ. २ (गौतम ! इन्द्रियोपचय (उपकरण) पाँच प्रकार का कहा गया है । गौतम! इन्द्रियनिर्वर्तना पाँच प्रकार कही गई हैं ।) द्रव्येन्द्रियों के भेद - निवृत्त्युपकरणे द्रवेयन्द्रियम् ।१७। द्रव्येन्द्रिय के दो भेद हैं - (१) निर्वृत्ति और (२) उपकरण . विवेचन - निवृत्ति रचना को कहा जाता है। निर्माणनामकर्म और अंगोपांगनामकर्म के निमित्त से शरीर पुद्गलों की रचना निर्वृत्ति हैं । अर्थात् शरीर में दिखाई देने वाली इन्द्रियों सम्बन्धी पुदगलों की विशिष्ट रचना निर्वृत्ति है । यह एक प्रकार से झरोखा है, जिसके माध्यम से जीव बाह्य-जगत का ज्ञान प्राप्त करता है । उपकरण इस बाह्य ज्ञान में सहायक होता है, तथा निर्वृत्ति रूप रचना को हानि नहीं पहुंचने देता ।. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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