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________________ आगम वचन - जीव-विचारणा परिणामिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा साइपरिणाम अ अणाइपरिणामए अ 1 अणाइपरिणामए... जीवत्थिकाए... भवसिद्धिआ, अभवसिद्धिआ । से तं. अणाइपरिणामिए । अनुयोगद्वार, सूत्र २४८, २५० ( पारिणामिक भाव दो प्रकार का है, यथा ( १ ) आदिपारिणामिक और (२) अनादिपारिणामिक ) ८७ अनादिपारिणामिक (१) जीवास्तिकाय (२) भव्यत्व और (२) अभव्यत्व। `यह अनादि पारिणामिक भाव हैं ।) पारिणामिक भावों के भेद जीवभव्याभव्यत्वादीनि च ।७ । जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व, यह तीन पारिणामिक भाव है तथा अन्य भी पारिणामिक भाव हैं । विवेचन सूत्र में 'च' शब्द से आचार्य ने यह द्योतित किया है कि जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व के अतिरिक्त जीव के और भी पारिणामिक भाव हैं । किन्तु इन तीन का स्पष्ट उल्लेख इसलिए किया है कि यह जीव के असाधारण भाव है, किसी भी अन्य द्रव्य में नही मिलते । - Jain Education International अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रदेशत्व, पारिणामित्व आदि और भी जीव के पारिणामिक भाव है, किन्तु यह गुण अन्य सभी द्रव्यों में भी मिलते हैं इसीलिए इनकी ओर 'आदीनि च' शब्द से संकेत कर दिया है । जीवत्व का अभिप्राय है जीवित रहना, जिस परिणाम के द्वारा जीव तीनों कालों में सदा जीवित रहता है (सिद्धावस्था में ज्ञान - चारित्र आदि भाव परिणामों से और संसारावस्था में आयु आदि दस प्राणों से) वह जीवत्व नाम का पारिणामिक भाव है । भव्यत्व का अभिप्राय है, मोक्ष प्राप्ति की योग्यता, इस परिणाम वाला जीव मोक्ष जाने की योग्यता रखता है । अभव्यत्व का अभिप्राय है मोक्ष प्राप्ति की अयोग्यता । जैसे कोरडू मूंग नहीं सीझता, इसी प्रकार कितना भी प्रयास करले किन्तु अभव्य जीव मुक्त नहीं हो सकता । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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