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________________ ८६ तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २ : सूत्र ६ द्रव्य लेश्या में पुद्गल विपाकी शरीरनामकर्म का उदय निमित्त पड़ता है, इस कारण द्रव्य लेश्या भी औदयिक भाव है ।। __प्रज्ञापना (लेश्या पद) में इस विषय को और भी स्पष्ट कर दिया गया ह। जं लेस्साइं दव्वाइं आदिअंति तल्लेसे परिणामे भवति ।। जीव जिस लेश्या के योग्य द्रव्य (कर्मदलिक) को ग्रहण करता है, उसके निमित्त से उसी रूप उसके (जीव के) परिणाम (भाव) हो जाते हैं । - अतः परिणामों के अनुसार भाव लेश्या भी. शुभ और अशुभ दो प्रकार की है । कृष्ण नील, कापोत अशुभ लेश्या हैं और तेजो, पद्म तथा शुक्लइन तीन को शुभ लेश्या कहा जाता है ।। दूसरी जिज्ञासा 'असिद्धत्व' भाव के विषय में हो सकती है कि इस नाम का कोई कर्म न होने पर भी 'असिद्धत्व' को औदयिक भाव क्यों कहा गया ? यह ठीक है कि 'असिद्धत्व' नाम का कोई कर्म नहीं है; किन्तु जीव का जो वास्तविक सिद्धत्व स्वभाव है उसे प्रगट न होने देने में कर्म ही कारण है । आठों ही कर्मों का उदय जीव को संसार में रोके रखता है, उसे सिद्ध नहीं होने देता, अतः आठों कर्मों का उदय ही 'असिद्धत्व' भाव का कारण है | अतः इस अपेक्षा से असिद्धत्व भी औदयिक भाव है । तीसरी जिज्ञासा यह हो सकती है कि कर्मों की कुल उत्तर प्रकृतियाँ १४८ हैं और उदय योग्य १२२ प्रकृतियाँ हैं तब औदयिक भाव भी १२२ होने चाहिए, २१ क्यों कहे गये ? इस शंका का समाधान यह है कि 'गति' भाव में आयु, गोत्र, जाति, शरीर आदि का समावेश हो जाता है, मिथ्यात्व में तीनों प्रकार के मिथ्यात्व का तथा कषाय में हास्यादि नोकषायों का-इस प्रकार सभी सम्भव औदयिक भावों का इन २१ भेदों में समावेश हो जाता है । -------------- १. आचार्यों ने विविधदृष्टियों से 'लेश्या' की अनेक परिभाषाएँ की हैं, किन्तु लेश्या की सर्वमान्य तथा सर्वथा संगत कोई एक परिभाषा निश्चित नहीं दी जा सकती । जो परिभाषा प्राप्त हैं उनमें अधिकतम संगत परिभाषा यही लगती है, कि लेश्या न योग है, न कषाय है, किन्तु इन दोनों के संयोग से जनित आत्मा की तदनुरूप भाव धारा-भाव लेश्या है । लेश्या पर विस्तारपूर्ण विवेचन देखें-उत्तराध्ययन सूत्र (आगमसमिती) पर प्रस्तावना उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी, पृ. ८४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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