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जीव-विचारणा ८३ आगम वचन -
खओवसमिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-खओवसमिए य खओवसमनिप्फण्णे य ।
खओवसमिआ आभिणिबोहिअणाणलद्धी. जाव खओवसमिआ मणपज्जवणाणलद्धी ।
खओवसमिआ मइअण्णाणलद्धी खओवसमिआ सुअ-अण्णाणलद्धी खओवसमिआ विभंगणाणलद्धी ।
खओवसमिआ चक्खुदंसणलद्धी अचक्खुदंसणलद्धी ओहिदंसणलद्धी एवं सम्मदंसणलद्धी ... | .
खओवसमिआ सामाइयचरित्तलद्धी.... चरित्ताचरित्तलद्धी खओवसमिआ दाणलद्धी एवं लाभ, भोग, उपभोग, खओवसमिआ वीरियलद्घो। से तं खओवसमिए । .
अनुयोग द्वार सूत्र २४२-२४७ (क्षायोपशमिक भाव दो प्रकार का कहा गया है १. क्षायोपशमिक और २. क्षयोपशमनिष्पन्न ।
क्षायोपशमिक मतिज्ञान से लगाकर श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान क्षायोपशमिक मनःपर्यायज्ञान तक ।
क्षायोपशमिक मति अज्ञान लब्धि, क्षायोपशमिक श्रुत अज्ञान लब्धि, क्षायोपशमिक अविधज्ञान/विभंगज्ञान लब्धि । क्षायोपशमिक चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, सम्यग्दर्शन लब्धि ।
क्षायोपशमिक सामायिक चारित्रलब्धि ... चारित्राचारित्रलब्धि (देशसंयम), क्षायोपशमिक दाम, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य लब्धि ... |
इस प्रकार क्षायोपशमिक भाव का वर्णन हुआ । मिश्र (क्षायोपशमिक) भावों के भेद -
ज्ञानाऽज्ञानदर्शनदानादिलब्धयश्चतुसित्रत्रिपंचभेदा : सम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्च ।६ ।
ज्ञान - (१) मतिज्ञान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान और (४) मनःपर्यवज्ञान ।
अज्ञान - (५) मतिअज्ञान (६) श्रुतअज्ञान (७) विभंगज्ञान
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