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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
दिगम्बर-शास्त्र मानते हैं – केवली आहार नहीं करते और स्त्री को मोक्ष नहीं मिलता,82. जबकि श्वेताम्बर–शास्त्र कहते हैं – केवलियों के भी औदारिक-शरीर होता है और क्षुधावेदनीय-कर्म भी शेष है, इस कारण उनको भी आहार की जरूरत रहती है।
इस प्रकार, केवली के आहार के संबंध में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर-परम्पराएं एकमत नहीं हैं। ठीक उसी प्रकार, आहार के प्रकार के संबंध में भी वे परम्पराएं एकमत नहीं हैं। श्वेताम्बर–परम्परा में आहार के तीन प्रकारों का वर्णन मिलता है, वहीं दिगम्बर-परम्परा में आहार के छह प्रकारों का उल्लेख है। धवलाटीका में सर्वप्रथम छह आहारों की कल्पना की गई है -
1. नोकर्माहार, 2. कर्माहार, 3. कवलाहार, 4. लेप्याहार, 5. ओजाहार, और 6. मनः आहार।
इससे पूर्व श्वेताम्बर मान्य आगमों में -सूत्रकृतांगसूत्र, नियुक्ति, प्रवचन- सारोद्धार, बृहत् संग्रहणी आदि में तीन प्रकार के आहार का ही उल्लेख मिलता है। उनमें कहा गया है, आहार तीन प्रकार के हैं -
1. ओजाहार, 2. लोमाहार, 3. प्रक्षेपाहार (कवलाहार) ।
श्वेताम्बर-ग्रन्थों में कर्माहार, नोकर्माहार और मनः आहार का उल्लेख नहीं है, साथ ही लोमाहार को भी लेप्याहार कहा गया है।
छह प्रकार के आहार निम्न हैं
. 1. नोकर्माहार 85 . - वायुमण्डल में प्रतिक्षणं स्वतः प्राप्त पुद्गल-वर्गणाओं और पुद्गल–पिण्डों का ग्रहण नोकर्माहार है। शरीर की
82 भुंक्ते न केवली न स्त्री मोक्षमेति दिगम्बराः । 83 अत्र कवललेपोएममनः कर्माहारान् परित्यज्य नोकर्माहारो ग्राह्यः
अन्ययाहार कालविरहाम्या सह विरोधात्। - षट्खण्डागम, 1/1/176 की धवलटीका सरिरेणोयाहारो तयाय फासेण रोमआहारी पक्खेवाहारो पुण कावलिओ होइ नायव्वो।। -प्रवचनसारोद्धार, आहार उच्छवास, गाथा 1180, द्वार-204 बोधपाहुड मूल टीका, गाथा 34
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