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________________ 518 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व जैनदर्शन भी मैकड्यूगल की इस बात का समर्थन करता है। वह स्वीकार करता है कि छींकने की क्रिया सहज है, उसमें परिवर्तन नहीं लाया जा सकता, परंतु आहारादि संज्ञाओं को विशेष प्रयत्न, प्रयास और प्रक्रिया के द्वारा परिमार्जित और अन्त में समाप्त भी किया जा सकता है। सहजक्रियाओं को शरीर के किसी एक भाग से सम्बन्धित कर सकते हैं, किन्तु मूलप्रवृत्त्यात्मक-क्रिया के सम्बन्ध में ऐसा करना संभव नहीं है। सहजक्रिया से ध्येय की पूर्ति तत्काल होती है, किन्तु मूलप्रवृत्त्यात्मक-क्रिया से तत्काल ऐसा हो, यह जरूरी नहीं है। चूंकि मूलप्रवृत्ति सम्बन्धी क्रियाएँ स्वयं देर तक होती हैं, अतः उनके ध्येय की प्राप्ति भी विलम्ब से होती है। मूलप्रवृत्ति के प्रकार Kind of Instincts} विद्वानों ने मूलप्रवृत्तियों का वर्गीकरण कई आधारों पर किया है। मैकड्यूगल के अनुसार भी मूलप्रवृत्तियाँ विभिन्न प्रकार की हैं। यहाँ हम इन मूलप्रवृत्तियों की जैनदर्शन में वर्णित संज्ञाओं के षोडषविध वर्गीकरण से तुलना करेंगे, साथ ही यह देखने का प्रयास भी करेंगे कि इन दोनों में कितनी समानताएँ एवं विभिन्नताएं हैं। आधुनिक मनोवैज्ञानिक संवेग Emotion} को भी मूलप्रवृत्तियों से सम्बन्धित करते हैं। संवेग की संख्या तो अनेक है, फिर भी मैकड्यूगल की चौदह मूलप्रवृत्तियों के निम्न चौदह संवेग हैं - |जैन-संज्ञाएँ 1. आहारसंज्ञा | 2. भयसंज्ञा | 3. मैथुनसंज्ञा 4. परिग्रहसंज्ञा 5. क्रोधसंज्ञा 6. मानसंज्ञा | 7. मायासंज्ञा | मैकड्यूगल की मूलप्रवृत्तियाँ 1. भोजन ढूंढना | 2. भागना 3. लड़ना/आक्रामकता 4. उत्सुकता 5. रचना 6. संग्रह | 7. विकर्षण मूलप्रवृत्तियों से सम्बद्ध संवेग | 1. भूख | 2. भय | 3. क्रोध 4. आश्चर्य 5. रचनात्मक आनन्द 6. संग्रह-भाव 7. घृणा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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