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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
सभी बिल्लियाँ चूहों का शिकार करने के लिए उन्हें ध्यानावस्थित होकर देखती हैं, पक्षी घोंसला बनाने के लिए घास फूस और टहनी आदि पर विशेष ध्यान देते हैं । जैनदर्शन की भी यह मान्यता सत्य है कि जब संज्ञाओं का उदय प्रबल होता है, तो जीव भी उस ओर आकृष्ट होता है, इच्छित वस्तु को प्राप्त करने का प्रयास करता है, इसके साथ ही, जैनदर्शन यह भी मानता है कि संज्ञाओं को विवेक के माध्यम से परिष्कारित कर सकते हैं। जब आहार - संज्ञा की प्रबलता होती है, तब भी व्यक्ति विवेकपूर्वक यह ध्यान रखता है कि उसके लिए क्या ग्राह्य हैं और क्या त्याज्य हैं, उसी प्रकार अन्य संज्ञाओं में भी समझ सकते हैं। इस प्रकार, जैनदर्शन संज्ञाओं को मात्र अंधप्रवृत्ति न मानकर उनमें मानवीय - विवेक को स्थान देता है ।
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मैकड्यूगल के अनुसार, मूलप्रवृत्यात्मक - क्रिया के साथ-साथ व्यक्ति एक विशेष प्रकार के संवेग का अनुभव करता है। जब हम किसी साँप को देखकर प्राणरक्षा के लिए भागते हैं, तो उस समय भय का अनुभव करते हैं, किन्तु जैनदर्शन यह मानता है कि जब भयसंज्ञा का उदय होता है, तभी व्यक्ति को भय लगता है और वह भागता है। यह सत्य है कि किसी व्यक्ति को साँप से डर लगता है, किन्तु किसी को यह डर नहीं भी लगता है, क्योंकि उसमें भयसंज्ञा का उदय नहीं है। जैन - कर्मग्रंथों के अनुसार, भय आठवें गुणस्थानक के अन्त में, अर्थात् आध्यात्मिक - विकास की एक विशेष अवस्था में नहीं भी लगता है। लोभ एवं मैथुन का भाव भी दसवें गुणस्थान में समाप्त हो जाता है। इस प्रकार, जैनदर्शन के अनुसार आध्यात्मिक-विकास की विभिन्न अवस्थाओं में ये संज्ञाएं लुप्त होती जाती हैं। मनोवैज्ञानिकों और जैन - दार्शनिकों के मत में यह महत्त्वपूर्ण अंतर है ।
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मूलप्रवृत्त्यात्मक - क्रियाएँ जीवनरक्षक व्यवहार में सहायक होती हैं जब हम किसी हिंसक जानवर को देखकर भागते हैं, तो उस भागने का एकमात्र ध्येय होता है - उस जानवर से अपने जीवन की रक्षा करना । इसी प्रकार, किसी प्रकार की मूलप्रवृत्त्यात्मक - क्रिया क्यों न हो, लेकिन उसका ध्येय प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जीवन-रक्षा का होता है। जैनदर्शन में ओघसंज्ञा और धर्मसंज्ञा के अतिरिक्त सभी चौदह संज्ञाएं जीवनसंरक्षणात्मक हैं। जहाँ ओघसंज्ञा वस्तुतः सामान्य आचार - नियमों के पालन के प्रति प्रेरित करती है, वहीं धर्मसंज्ञा व्यक्ति को आध्यात्म-पक्ष की ओर प्रेरित करती है, अतः ये दोनों मूलप्रवृत्तियों से भिन्न हैं ।
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