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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
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अध्याय-15
“जैनधर्म की संज्ञा की अवधारणा और मनोवैज्ञानिक
मैकड्यूगल Mc-Dougall} की मूलवृत्ति की अवधारणा का
तुलनात्मक विवेचन
अमेरिका के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मैकड्यूगल के अनुसार, मूलप्रवृत्ति केवल यांत्रिक Mechanical} क्रिया मात्र नहीं है, बल्कि वह एक ऐसी जन्मजात मनोदैहिक (Psychophysical} प्रवृत्ति है, जिससे प्रभावित होकर व्यक्ति किसी उत्तेजना-विशेष की ओर अपना ध्यान देता है, किसी विशेष प्रकार के संवेग अथवा आवेश का ही अनुभव करता है तथा उस उत्तेजना विशेष के प्रति विशिष्ट (Specific} ढंग की ही प्रतिक्रिया प्रकट करता है। मैकड्यूगल के अनुसार, मूलप्रवृत्तियों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं, जो जैनधर्म की संज्ञाओं से अंशतः भिन्न भी हैं और अंशतः समान भी हैं।
मैकड्यूगल के अनुसार, मूलप्रवृत्तियाँ जन्मजात मनोदैहिक-प्रवृत्ति हैं। वे जन्मना हैं, व्यक्ति उन्हें सीखता नहीं,1217 जैसे -बया पक्षी घोंसला बनाने का काम सीखकर नहीं करता, बल्कि स्वतः करता है। जैनदर्शन में संज्ञाओं को कर्मजन्य अर्थात् जन्मना माना गया है। मात्र धर्म और ओघ संज्ञाएं अर्जित हैं, शेष सभी संज्ञाएं मुख्यतः वेदनीय-कर्म और मोहनीय-कर्म के उदय से होती हैं। आहार, भय, मैथुन, परिग्रह आदि ऐसी ही संज्ञाएं हैं। जैनदर्शन के अनुसार, अरिहंत और सिद्ध जीवों को छोड़कर ये संज्ञाएँ लगभग सभी संसारी-जीवों में पाई जाती हैं।
मैकड्यूगल के अनुसार, मूलप्रवृत्तियाँ जीव को एक विशेष प्रकार के पदार्थ या क्रिया की ओर अवलोकन करने के लिए प्रेरित करती हैं, जैसे
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Instincts are inborn patterns of behavior that are biologically determined rather than learned. -Understanding Psychology, Robert S. Feldman P.N. 289
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