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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व 501 मात्रा में होता है, तो व्यक्ति उदासी से छुटकारा पा लेता है। पोषक आहार के अभाव में उदासी तत्काल आ जाती है। जिस आहार में विटामिन्स और एमिनो एसिड का उचित संतुलन होता है, उसके सेवन से उदासी का एक हेतु समाप्त हो जाता है। नकारात्मक भाव मन में न आएं - शोक से बचने के लिए निषेधात्मक भावों से बचने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि व्यक्ति को नकारात्मक-भाव अधिक आते हैं। आदमी नकारात्मक भाव में जीता है, इसलिए खिन्नता, अवसाद, उदासी, आत्महत्या का भाव आना, घर से पलायन करना आदि सोच मन-मस्तिष्क में चलती रहती है। नकारात्मक भाव मन में न आएं, इसका अभ्यास इस संकल्प के द्वारा किया जा सकता है कि आज मैं नकारात्मक विचारों को मन में नहीं आने दूंगा, सकारात्मक विचारों में ही रहूंगा। इस प्रकार का चिन्तन करते हुए नकारात्मक-भावों से मुक्त होते जाएंगे। ___ शोक पर विजय के लिए उपयुक्त विवेचना के साथ-साथ यह भी विचारणीय है कि प्राणी प्रवृत्ति से बंधता है और निवृत्ति से मुक्त होता है। प्रवृत्ति बांधती है और निवृत्ति मुक्त कराती है। प्रवृति तभी बंधती है, जब उसके पीछे अविद्या के संस्कार रह जाते हैं। वीतराग भी प्रवृत्ति करता है, किन्तु वीतराग बंधता नहीं है। शोक को भी मूल-प्रवृत्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। जब भी शोक होगा, आर्तध्यान होगा और बंध का कारण बनेगा, इसलिए शोक से मुक्ति के लिए ज्ञातादृष्टा भाव में रहना आवश्यक है। मात्र आत्मरमणता और स्वभाव में चित्त की वृत्तियाँ रहें, अन्य प्रवृत्तियों में नहीं रहें, ऐसी स्थिति में शोक-संज्ञा स्वतः ही समाप्त हो जाएगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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