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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व 499 आत्मविश्वास शोक को समाप्त करता है 1181_ स्वयं का स्वयं पर विश्वास होना सुदृढ़ व्यक्तित्व की पहचान है। आत्म- विश्वास व्यक्तित्व-विकास का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। आज का व्यक्ति थोड़ी-सी असफलता और अनिष्ट की प्राप्ति पर शोक करता है तथा निराशा, हताशा, अवसाद, निरुत्साह के चक्रव्यूह में घिर जाता है। व्यक्ति शरीर से बूढ़ा हो, पर मन से नहीं, क्योंकि कहा गया है - "मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।" जिसके हृदय में उत्साह, ऊर्जा, उमंग और आशा है, वह वृद्धावस्था में भी युवा है। शोक, संताप, निराशा, अनिष्ट वस्तुएं उसको प्रभावित नहीं कर सकतीं। हमें यह विश्वास रहना चाहिए कि हर आत्मा में अनंत शक्ति भरी पड़ी है, आवश्यकता है सिर्फ उस पर रहे आवरण को हटाने की। भय, आशंका, हीन भावना से स्वयं को सदा दूर रखें। जहाँ भी आत्मविश्वास का दीपक जलेगा, शोकरूपी अंधकार उसके अस्तित्व को छू न सकेगा, क्योंकि 'आत्मविश्वास ही सम्पूर्ण सफलताओं की जननी है।' दृढ़ निश्चय से शोक पर विजय - दृढ़ निश्चय के जागते ही सुप्त शक्तियाँ सक्रिय हो उठती हैं, जो निश्चित रूप से व्यक्ति के मन में छाई उदासी और शोकावस्था को समाप्त कर देती हैं। जब मन में लक्ष्य पाने की छटपटाहट हो, तो संकल्पशक्ति स्वतः ही संगृहीत और तीव्र हो जाती है, फिर उदासी और शोक का कोई स्थान नहीं होता। वह व्यक्ति लक्ष्य को प्राप्त कर ही विश्राम लेता है। यह संकल्पशक्ति सभी में समाहित है, आवश्यकता है, इसे जाग्रत करने की। खुदी को कर बुलंद इतना, कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है ? साहस - शोक के कारण व्यक्ति अपने-आपको निरुत्साही-असहायी मानता है, पर जो व्यक्ति साहसी, उत्साही होता है, वह कभी शोक नहीं करता। 1181 ___ 1) सफलता का सफर, सोहनलाल कमल सिपानी, पृ. 9 2) आपकी सफलता आपके हाथ, श्री चन्द्रप्रभ, पृ. 37 3) मन का सम्पूर्ण विज्ञान, दीप त्रिवेदी, पृ. 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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