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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व चाहिए, कुटिलता बचना चाहिए, किसी के प्रति भी ममत्व नहीं रखना चाहिए इत्यादि । मनुष्य के ये सभी साधारण कर्त्तव्य हैं | 446 इन कर्त्तव्यों में कुछ कर्त्तव्य स्वयं से संबंधित हैं तथा कुछ अन्य से। मार्दव, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन और ब्रह्मचर्य मूलतः वैयक्तिक - सद्गुण हैं। क्षमा, आर्जव, सत्यादि सामाजिक - सद्गुण के साथ वैयक्तिक - सद्गुण भी हैं। चूंकि समाज के बीच में कोई स्पष्ट विभाजन-रेखा नहीं हो सकती, इसलिए इन सद्गुणों को भी वैयक्तिक और सामाजिक- दोनों कोटियों में रखा जा सकता है। ये एकान्तिक - सद्गुण नहीं हैं । धर्म के इन दसों लक्षणों में से प्रत्येक के साथ 'उत्तम' विशेषण लगाया जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि धर्म के ये दसों लक्षण 'धर्मसंज्ञा' को तभी प्राप्त कर पाएंगे, जबकि वे 'उत्तम' श्रेणी के होंगे। पूजा या ख्याति के लिए क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि को जीवन-पद्धति में स्वीकार कर लेना कभी शुद्ध धर्म का स्वरूप नहीं है । ' चूंकि उनमें 'उत्तमता' हो ही नहीं सकती है,' इसलिए ये धर्म नहीं होंगे।' 1003 1004 1005 "अक्सर हम राग-द्वेष, घृणा, आसक्ति, ममत्व, तृष्णा, काम, क्रोध, अहंकार आदि को अधर्म (पाप) कहते हैं और क्षमा, शान्ति, अनासक्ति, निर्वेरता, वीतरागता, विरागता, निराकुलता आदि को धर्म कहते हैं । " चूंकि क्षमा आदि धर्म धारण करने से नए कर्मों का आना (आस्रव) तो बन्द हो ही जाता है, साथ ही, पूर्व में बंधे कर्म भी निर्जरित होने लगते हैं और जीव को 'मोक्ष-पद पाना सहज हो जाता है, इसी आशय से इन दसों को 'धर्म' कहा गया है। 3. रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र) भी धर्म का स्वरूप हैं जैनदर्शन में दस सामान्य धर्मों के अतिरिक्त कुछ विशेष धर्म भी हैं, जो मुनियों और सामान्यजन के लिए अलग-अलग निर्धारित किए गए हैं, - 1003 क) इष्ट प्रयोजनपरिवर्जनार्थमुत्तमविशेषणम् । सर्वार्थसिद्धि, −9/6 ख) राजवार्त्तिक - 9/6/26 चारित्रसार - 58/1 धर्म का मर्म, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 16 1004 1005 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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