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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
प्रकार हैं। ज्ञान और अनुभव के भेद से भावसंज्ञा के दो प्रकार हैं। ज्ञानसंज्ञा के मति, श्रुत आदि पांच भेद हैं। अनुभवसंज्ञा के सोलह भेद बतलाए हैं।
यहाँ, द्रव्यसंज्ञा में योग के कारण कर्मवर्गणा के पुदगल, जो व्यक्ति विशेष से बंध जाते हैं, वे सचित् और मिश्र-दोनों हो सकते हैं। उनके परिणामस्वरूप जो भावना जाग्रत होती है, वह द्रव्यसंज्ञा है। जो कर्म से नहीं बंधते, वे अचित् हैं।
संज्ञा
ज्ञानरूप
क्षयोपशमजन्य (ज्ञान-संज्ञा)
उदयजन्य (अनुभव-संज्ञा)
हेतुवादोपदेशिकी-संज्ञा दृष्टिवादोपदेशिकी-संज्ञा
दीर्घकालोपदेशिकी-संज्ञा
4 प्रकार की संज्ञा
6 प्रकार की संज्ञा 10 प्रकार की संज्ञा 16 प्रकार की संज्ञा
1. आहारसंज्ञा
1. आहारसंज्ञा
1. आहारसंज्ञा
1. आहारसंज्ञा
2. भयसंज्ञा
2. भयसंज्ञा
2. भयसंज्ञा
2. भयसंज्ञा
3. मैथुनसंज्ञा
3. मैथुनसंज्ञा
3. मैथुनसंज्ञा
3. मैथुनसंज्ञा
4. परिग्रहसंज्ञा
4. परिग्रहसंज्ञा
4. परिग्रहसंज्ञा
4. परिग्रहसंज्ञा
5. ओघसंज्ञा
5. ओघसंज्ञा
5. ओघसंज्ञा
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