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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व T तत्त्वार्थसूत्र में माया को तिर्यंचगति का कारण कहा गया है चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से आत्मा में जो कुटिल भाव पैदा होता है, उससे व्यक्ति तिर्यंचगति का बंध कर लेता है । माया यह भव तो बिगाड़ती ही है, इससे अगला भव भी बिगड़ जाता है, इसलिए शुभचन्द्राचार्य ने कहा है – “दोनों लोकों को बिगाड़ने वाली माया के प्रपंच में मत पड़ो।',757 356 4. माया असत्य-अनर्थ की जननी एवं दुर्गुणों की खान योगशास्त्र. में कहा गया है कि माया असत्य की जननी है, वह शील अर्थात् सच्चारित्ररूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी के समान है। यह मिथ्यात्व एवं अज्ञान की जन्मभूमि है और दुर्गति का कारण है | 758 माया के वशीभूत होकर मानव मृषावाद का सेवन करता है। वह अपनी गलतियों को छिपाकर, असत्य भाषण करता है । वास्तव में देखा जाए, तो माया के बिना झूठ ठहर नहीं सकता। झूठ, चोरी, करचोरी, जमाखोरी, विश्वासघात, देश, समाज और परिजनों के साथ गद्दारी आदि अनेक दुर्गुण माया के कारण उत्पन्न होते हैं। मायावी व्यक्ति अंदर से कुछ और तथा बाहर से कुछ और होता है। जलते अंगारे की अपेक्षा राख में छिपे अंगारों की भयंकरता अधिक होती है। जो शत्रु है, उससे हम सावधान रह सकते हैं, पर जो मित्र बनकर शत्रु का कार्य करता है, उससे बचना कठिन हो जाता है, जैसे- बगुले और कौए के बारे में एक कवि ने कहा है - तन उजला मन सांवला, बगुला कपटी भेख । यायूँ तो कागा भला, भीतर बाहर एक । । Jain Education International 5. मायाचार से अहंकार पुष्ट होता है - व्यक्ति जब किसी को ठगता है, धोखा देता है और सफल हो जाता है, तब इतना प्रसन्न होता है, मानों कोई पुरस्कार प्राप्त हुआ हो और उस सफलता से प्रेरित होकर वह अधिक लाभ के लिए बड़ी ठगी करता है, धोखा 756 माया तैर्यग्योनस्य.... ...... -- तत्त्वार्थसूत्र, अ. 6, सूत्र 17 757 अलं माया प्रपंचेन, लोकद्वयविरोधिना । - ज्ञानार्णव, गाथा 996 758 असूनृतस्य जननी, परशुः शीलशाखिनः । जन्मभूमिरविद्यानां माया दुर्गतिकारणम् ।। 1 756 योगशास्त्र 4/15 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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