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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व 281 पेड-पौधों में भी होती है। 'आचार्य मलयगिरि ने इस ममत्व और अधिकार की भावना को समझाने के लिए अमरबेल का उदाहरण दिया। "अमरबेल प्रारम्भ में किसी पेड़ का सहारा लेकर ऊपर चढ़ती है, फिर वह संपूर्ण पेड़ पर अपना आधिपत्य जमा लेती है, उस पर छा जाती है और धीरे-धीरे उसे खा जाती है। संग्रह की भावना मधुमक्खी में भी होती है, एक चींटी में भी होती है और छोटे-बड़े सभी प्राणियों में होती है। छोटे-से-छोटा प्राणी भी अपने लिए संग्रह करता है। संग्रह की उसमें मौलिक मनोवृत्ति होती है।"543 संग्रहवृत्ति का कोई सार्वभौम मापदण्ड सम्भव नहीं है, इसलिए इसे व्यक्ति के स्वविवेक पर खुला छोड़ दिया जाए। यदि व्यक्ति विवेकशील और संयमी है, तब वह समाज के हित में निर्णय ले सकता है और स्थिति यदि भिन्न है, तो यह अधिकार समाज को दे देना चाहिए। व्यक्ति का मौलिक कर्तव्य भी यही कहता है कि धन का अर्जन नैतिक प्रकार से और धर्मनीति से युक्त हो और धन का संचय भी। ममत्व-वृत्ति का त्याग एवं समत्व-वृत्ति का विकास - यद्यपि परिग्रह-संज्ञा की उपस्थिति प्राणी मात्र में पाई जाती है, किन्तु परिग्रह-संज्ञा वस्तुतः आत्मा को पर से जोड़ने की प्रवृत्ति है। परिग्रह-संज्ञा के परिणामस्वरूप व्यक्ति में ममत्व-वृत्ति का विकास होता है। गीता में भी कहा गया है ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते। संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधऽभिजायते।। क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।। -गीता -2/62-63 अर्थात, परिग्रह संबंधी वस्तु का चिन्तन करने से उसके प्रति आसक्ति उत्पन्न होती है। उस आसक्ति के परिणामस्वरूप वस्तुओं की कामना और इच्छा उत्पन्न होती है। कामनाओं की पूर्ति में व्यवधान आने 543 महावीर का अर्थशास्त्र, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 50 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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