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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
2. जुगुप्सा आवश्यक भी और अनावश्यक भी 3. विचिकित्सा के प्रकार 4. विचिकित्सा पर विजय कैसे ?
अध्याय -14
511-514
जैनधर्म में संज्ञा की अवधारणा की बौद्धधर्म में चैतसिकों की अवधारणा से तुलना।
अध्याय - 15
515-522
जैनदर्शन की संज्ञा की अवधारणा और मनोवैज्ञानिक मैकड्यूगल की मूलवृत्ति की अवधारणा का तुलनात्मक विवेचन।
अध्याय - 16
523-540
1. संज्ञा और विवेक 2. संज्ञा और संज्ञी में अन्तर
3. संज्ञा विवेकशीलता के रूप में
4. उपसंहार
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