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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
6. भयमुक्ति या अभय की साधना 7. वैश्विक शस्त्रों की दौड़ का कारण भय 8. अभय और विश्वशांति
अध्याय – 4 मैथुन संज्ञा
156-232 1. कामवासना का स्वरूप और लक्षण 2. कामवासना के प्रकार 3. जैनदर्शन में वेद (कामवासना) और लिंग (शारीरिक संरचना) की
अवधारणा 4. जैनदर्शन की मैथुन संज्ञा की फ्रायड के लिबिडो से तुलना एवं
समीक्षा 5. कामवासना के दमन एवं निरसन के संबंध में जैन-दृष्टिकोण 6. व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास और कामवासना 7. वासना-जय की प्रक्रिया और ब्रह्मचर्य की साधना
अध्याय - 5 परिग्रह संज्ञा
233-285
1. परिग्रह का स्वरूप एवं लक्षण 2. जैन-दर्शन में परिग्रह के प्रकार . 3. परिग्रह या संचयवृत्ति के दुष्परिणाम 4. जैन-दर्शन में परिग्रह वृत्ति के नियंत्रण के उपाय - परिग्रह
परिमाण व्रत 5. परिग्रह-वृत्ति के विजय के संबंध में गांधीजी का ट्रस्टीशिप का
सिद्धांत 6. धन अर्जन की वृत्ति एवं धनसंचय की वृत्ति में अंतर 7. ममत्ववृत्ति का त्यांग एवं समत्ववृत्ति का विकास
अध्याय – 6 क्रोध संज्ञा
286-317
1. क्रोध का स्वरूप एवं लक्षण 2. क्रोध के विभिन्न रूप
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