SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व (7) इस शोध-सामग्री को कम्प्यूटराइज़्ड करने में राजा जी' ग्राफिक्स, शाजापुर के श्री शिरीष सोनी एवं प्रूफ-संशोधन में श्री चैतन्यकुमारजी सोनी शाजापुर का विशिष्ट सहयोग रहा है। प्राच्य विद्यापीठ में कार्यरत् विद्वद्वर्य रामजी एवं प्रवीणजी शर्मा का सहयोग भी अनुमोदनीय रहा, एतदर्थ उनके प्रति भी मैं अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती इसके अतिरिक्त प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस शोधप्रबंध के प्रणयन में जो भी सहयोगी बने, उन सबके प्रति मैं अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती Dher - इस सम्पूर्ण शोध-प्रबंध में अज्ञान एवं प्रमादवश त्रुटियाँ रहना स्वाभाविक है, अतः प्रबुद्ध पाठक अपने सुझाव एवं मंतव्य प्रस्तुत करने हेतु सादर आमंत्रित हैं। अन्त में, शास्त्र विरूद्ध कुछ भी लिखा गया हो, तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। - गुरुहेमचरणरज साध्वी डॉ. प्रमुदिताश्री -------000------- Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy