SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 182 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व समय में एक से अधिक वेदों का अनुभव नहीं करता। स्त्रीवेद का उदय होने पर स्त्री पुरुष की अभिलाषा करती है तथा पुरुषवेद का उदय होने पर पुरुष स्त्री की अभिलाषा करता है।304 तीनों वेद, भाववेद की अपेक्षा से नौ गुणस्थानक तक तथा द्रव्यवेद अर्थात् लिंग की अपेक्षा से चौदह गुणस्थानक तक पाए जाते हैं। तीनों वेदों में जीव का काल - पुरुष वेद- . जघन्यतः-अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्टतः –साधिक सागरोपम शत पृथक्त्व स्त्री वेद- जघन्यत:-एक समय उत्कृष्टतः-पृथक्त्व कोटि पूर्व अधिक एक सौ दस पल्योपम नपुंसकवेद- जघन्यतः-एक समय उत्कृष्टतः-अनंतकाल अवेदी-अवस्था में जीव का काल - उपक्षमश्रेणी आश्रित - जघन्यतः - एक समय उत्कृष्टतः - अन्तर्मुहूर्त क्षपकश्रेणी आश्रित - अनंतकाल सवेदक जीव, अर्थात् वेद (इच्छा) सहित जीव तीन प्रकार के होते 1:30K 1. अनादि-अपर्यवसित 2. अनादि-सपर्यवसित 3. सादि-सपर्यवसित जिन जीवों में अनादिकाल से संवेदकता चली आ रही है एवं कभी समाप्त नहीं होती, वे अनादि अपर्यवसित संवेदक कहे जाते हैं। जिन जीवों की संवेदकता पूर्णतः समाप्त हो जाती है, उन्हें अनादि-सपर्यवसित-संवेदक माना जाएगा। जो एक बार अवेदी होकर (ग्यारहवें गुणस्थान से गिरकर) पुनः संवेदी हो जाता है, उसे सादि सपर्यवसित संवेदक कहा जाता है। अवेदक जीव दो प्रकार के होते हैं- 1. सादि- अपर्यवसित एवं 2. 304 एगे वि य णं जीवे एगेण समएणं एगं वेयं वेएइ तं जहा - (1) इत्थिवेयं वा (2) पुरिसवेयं वा - व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र- 2/5/1 305 जीवाभिगम प्रतिपत्ति- 9/232 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy