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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
–“दीक्षा ग्रहण के बाद पूर्व जीवन में स्त्रियों के साथ अनुभूत हास्य, क्रीड़ा आदि का कदापि चिन्तन न करें।"
उपर्युक्त कारण के अतिरिक्त मैथुन - संज्ञा की उत्पत्ति के अन्य कारण भी हो सकते हैं
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1. स्त्रियों की कामजनक कथा करने से एवं स्त्रियों के मनोहर और मनोरम अंगों का कामरागपूर्वक अवलोकन करने से।
2. अतिमात्रा में आहार- पानी का सेवन करने से या सरस स्निग्ध भोजन का उपयोग करने से ।
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3. स्त्री, पशु, नपुंसक से युक्त शय्या या आसनादि का सेवन करने से I
4. अतिमात्रा में मादक पदार्थ, जैसे- शराब आदि का सेवन करने से । 5. श्रृंगार, विलेपन, सुगंधित इत्र, सुन्दर वस्त्राभूषण का धारण करना, कामवासना को उत्तेजित करने तथा मैथुन - संज्ञा की उत्पत्ति के कारण होते हैं।
6. काम - विकार उत्पन्न करने वाले अश्लील - साहित्य और वस्त्रों को ग्रहण करने से ।
7. आधुनिक युग के अश्लील एवं कामुक अंगों के प्रदर्शन करने वाले कपड़े पहनना भी कामवासना को उत्पन्न करते हैं ।
इस प्रकार, मैथुन - संज्ञा की उत्पत्ति के उपर्युक्त कारण भी हो सकते हैं।
मैथुन के प्रकार
1. स्मरण,
भारतीय महर्षियों ने मैथुन के आठ प्रकार बताए हैं244 2. कीर्त्तन, 3. केलि, 4. प्रेक्षण, 5. गुह्यभाषण, 6. संकल्प, 7. अध्यवसाय और 8. सम्भोग । इन आठों प्रकार के मैथुनों का ब्रह्मचर्य - महाव्रत में परित्याग करना होता है। जब तक मन में कुत्सित विचारों का भयंकर विष व्याप्त रहेगा, तब तक वह ब्रह्मचर्य की निर्मल साधना नहीं कर सकता ।
स्मरण कीर्तन केलिः प्रेक्षणं गुह्यभाषणं, संकल्पोऽध्यवायश्च क्रिया निर्वृत्तिरेव च ।
एतन्मैथुष्टां प्रवदन्ति विवक्षणाः,
विपरीत-ब्रह्मचर्यमेतदेवाष्ट लक्षणम् ।। - पातंजलयोग दर्शनम्
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