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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
जाती है। भय का संवेग ही व्यक्ति के हृदय में असुरक्षा की भावना उत्पन्न करता है और इस असुरक्षा की भावना के कारण वह आक्रामक हो जाता है और अपनी सुरक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्र जुटाता है। इसी प्रकार, क्रूरता का संवेग व्यक्ति को पेशेवर हत्यारे के रूप में बदल देता है। शत्रुता का भाव व्यक्ति में अविश्वास पैदा करता है, जिससे वह स्वयं को सदैव असुरक्षित अनुभव करता है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि मानव-मस्तिष्क में उपजे भय, भोगाकांक्षा, क्रूरता का भाव आदि संवेग हिंसा या युद्ध के लिए जिम्मेदार हैं। .
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व दो महाशक्तियों - अमेरिका और रूस के खेमों में बंट गया। इन दोनों गुटों में हथियारों की होड़ में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। दोनों महाशक्तियों ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि अपने मित्र राष्ट्रों की सुरक्षा के लिए भी नए हथियारों, विशेषकर नाभिकीय (न्यूक्लियर) व परम्परागत हथियारों का उत्पादन किया। दोनों महाशक्तियाँ स्वयं तो भयंकर अस्त्र-शस्त्रों की होड़ में लगी थी, साथ ही विकसित देशों ने अपने समर्थक राज्यों को भी हथियार देना प्रारंभ कर दिया। यह विश्व-स्तर पर उनकी शत्रुता का विस्तार था। मात्र यही नहीं, अपने उत्पादित अस्त्र-शस्त्रों की खपत के लिए, दूसरे शब्दों में, अपना बाजार खोजने में अन्य राष्ट्रों को एक-दूसरे के विरुद्ध उकसाया।
इस प्रकार, विश्व में हथियार एवं अस्त्र-शस्त्रों की होड़ का तीसरा प्रमुख कारण व्यवसाय था, अर्थात् धन कमाने के लिए तीसरी दुनिया के देशों को हथियार बेचना था। इस तरह, संपूर्ण विश्व में सैन्यीकरण की स्थिति बनी, जिसका अर्थ था- विश्व के सभी भागों में हथियारों की होड़। इस कारण, विश्व में अस्त्र-शस्त्रों की संख्या में कई गुना वृद्धि होने लगी। आज मानवत्ता बारूद के ढेर पर बैठी है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय चिन्तन का मुख्य आधार यह था कि विरोधी राष्ट्रों से अपनी सुरक्षा के लिए हथियारों का भारी भण्डार जमा कर शान्ति को सुनिश्चित किया जा सकता है, लेकिन इस धारणा ने विश्व में शान्ति को सुनिश्चित करना तो दूर, मानव का जीना ही दूभर कर दिया।
अब तक जितने भी नाभिकीय-हथियार जमा हो चुके हैं, वे पृथ्वी को कई बार नष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं। वर्तमान में सभी देश आणविक
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