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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व जैन दर्शन की संज्ञा की अवधारणा का समीक्षात्मक अध्ययन के प्रकाशन प्रसंग पर खूब-खूब आशीर्वाद स्वाध्याय तो संयम-जीवन का प्राण है। परमात्मा के शासन के एक-एक तत्त्व अद्भुत हैं, अनुपम हैं, (Uncompareable) जिनवाणी तो ज्ञान का दरिया है, Ocean of Knowledge ! 'इसमें गहरे पानी पेठ' जो गहराई में उतरेगा, वो ही सच्चे मोती पायेगा। आपने मेहनत की शास्त्र विषयों की गहराई में जाने की कोशिश की- खूब-खूब आनन्द। उत्तरोत्तर जिनाज्ञानुसार स्वाध्याय को जीवन में परिणत कर मोक्ष पायेंयही शुभेच्छा. आचार्य विनयरश्मिरत्नसूरि १०.९.२०१२, उस्मानपुरा आशीर्वचनम् परमात्मा महावीर ने 'आचारांग' आगम के प्रथम सूत्र में संज्ञा की चर्चा की है। यह एक व्यापक शब्द है, जो हर प्राणी के जीवन से जुड़ा है। ... कुछ करने की, कुछ पाने की, कुछ छोड़ने की वृत्ति संज्ञा है।इन संज्ञाओं पर विजय प्राप्त करना ही हमारा लक्ष्य है, यही मुक्ति का मार्ग है, इसलिये इन संज्ञाओं के स्वरूप, विषय का बोध होना बहुत जरूरी है, ताकि इनके प्रति अनासक्ति का भाव जगाया जा सके। साध्वी श्री प्रमुदिता श्रीजी ने इस उपयोगी विषय पर शोध-प्रबन्ध लिखकर एक अनुमोदनीय पुरुषार्थ किया है। वे उदीयमान विदुषी साध्वी हैं। संयम की लघु पर्यायावधि में उन्होंने अध्ययन के क्षेत्र में प्रशंसनीय उँचाई प्राप्त की है। चिन्तन-मनन करने योग्य यह शोध-प्रबन्ध प्रकाशित होने जा रहा है, यह प्रसन्नता का विषय है। निश्चित ही यह ग्रन्थ विद्वदजनों के साथ हर स्वाध्यायी के लिए उपयोगी बनेगा। यही मेरी कामना है। साध्वी श्री प्रमुदिताश्रीजी स्वाध्याय की गहराईयों के साथ लेखन के क्षेत्र में प्रगति साधते रहे उनके द्वारा निरन्तर नवसर्जन होता रहे....। -उपाध्याय मणिप्रभसागर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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