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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
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विश्व शाकाहार परिषद् के अध्यक्ष पद पर आरूढ़ डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने कहा था –"युद्ध का मूल मांसाहार में है। जिस व्यक्ति में प्राणियों के प्रति दया का अभाव है, वह मनुष्य के प्रति भी दयाहीन होता है। मांस मनुष्य का भोजन नहीं है, प्राचीन ग्रन्थों में राक्षसों व दैत्यों आदि को मांसाहारी बताया गया है, इससे यह ज्ञात होता है कि मांसभोजी की अंतरवृत्तियाँ राक्षसी हो जाती हैं। क्रूरता, लोलुपता, कठोरता और प्रतिक्षण उग्रता -ये सब मांसाहार के दुष्परिणाम हैं।
मांसाहार के प्रभाव से मनुष्य के मन में उत्तेजना, आक्रोश, तनाव, असंतोष और जीवन से पलायन की वृत्ति पनपती है। यह स्पष्ट देखने में आता है कि आजादी के बाद भारत में जिस अनुपात में मांसाहार बढ़ा है उसी अनुपात में देश में भ्रष्टाचार, अपहरण, व्यभिचार, बलात्कार, डकैती, हत्याएँ, तस्करी आदि की घटनाएं भी बढ़ी हैं। इससे जनजीवन आतंकित और अशांतिमय हो गया है। आजकल समाज में जो क्रूर-से-क्रूर हिंसा और अपराध हो रहे हैं, उनके मूल में मद्य और मांस का सेवन ही मुख्य कारण है। पुलिस का यह रिकार्ड है कि जिन प्रदेशों व राष्ट्रों में अपराध अधिक होते हैं, अपराधियों के गिरोहों के जो अड्डे हैं, वहाँ पर मांसाहार और मद्यपान भी खुलकर चलता है। मांसाहारी ही संसार में सबसे अधिक खतरनाक अपराध करते हैं। हत्याओं, डकैतियों और बलात्कारों में मांसाहारी प्राणियों का सबसे ज्यादा हाथ रहता है, इसलिए यह बात प्रसिद्ध है - "कत्लखाने हिंसा, बर्बरता और क्रूरता के अड्डे हैं।" संसार में 85 प्रतिशत हथियार निर्यात करने वाले देशों में अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन -ये छ: राष्ट्र हैं और इन देशों में आज भी मांसाहार का सर्वाधिक प्रचलन है।
मांसाहार से बढ़ती बीमारियाँ -
मांसाहार मनुष्य को न केवल मानसिक-दृष्टि से हीन, पतित और आवेशग्रस्त बनाता है, किन्तु शारीरिक-दृष्टि से भी रोगों का घर बनाता है। मांसाहारी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधी-शक्ति समाप्त हो जाती है और वह तरह-तरह के भयंकर रोगों से ग्रस्त भी हो जाता है। अमेरिका के नोबल पुरस्कार विजेता डॉ. माइकल ब्राउन और डॉ. जोसेफ गोल्डस्टीन ने अनेक प्रयोगों एवं परीक्षणों के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि मांसाहार करने वालों में हृदयरोग, चर्मरोग, पथरी आदि बीमारियों की सर्वाधिक संभावना रहती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) के बुलेटिन
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