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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
सूर्योदय के पूर्व तक का समय विकाल माना गया है।) एवं रात्रिभोजन को त्याज्य बताया गया है। 135 इस प्रकार, सभी धर्मशास्त्रों में रात्रिभोजन को हिंसात्मक मानकर उसका निषेध किया गया है।
वैज्ञानिक दृष्टि से रात्रिभोजन-निषेध -
जहाँ तक धार्मिक मान्यता का प्रश्न है, उसमें रात्रिभोजन का हिंसादि कारणों से निषेध किया गया है, परंतु रात्रिभोजन योगशास्त्र, आयुर्वेद और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी हानिकारक है। चिकित्सा-शास्त्रियों का अभिमत है कि कम से कम सोने के तीन घण्टे पूर्व भोजन कर लेना चाहिए। जो लोग रात्रि में भोजन करते हैं और भोजन के तुरन्त बाद सो जाते हैं, उनके शरीर में जल, प्राणवायु और सूर्य के प्रकाश के अभाव के कारण आहार सुचारू रूप से पचता नहीं है, जिससे अनेक रोगों का जन्म होने लगता है।
__ सूर्य के प्रकाश में केवल प्रकाश ही नहीं होता, अपितु कीटाणुनाशक तथा जीवनदायिनी-शक्ति भी होती है। सूर्य के प्रकाश से हमारे पाचन तंत्र का गहरा संबंध है। सूर्य की रोशनी से शरीर में रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। भारतीय आयुर्वेद का अभिमत है कि शरीर में दो प्रमुख कमल होते हैं, हृदयकमल और नाभिकमल । 136 जिस प्रकार कमल सूर्योदय के साथ खिलता है और सूर्यास्त के साथ बंद हो जाता है, उसी प्रकार जब तक सूर्य का प्रकाश रहता है, तब तक उसमें रहने वाली सूर्य-किरणों के प्रभाव से हमारा पाचनतंत्र भी ठीक काम करता है। सूर्य के अस्त होते ही उसकी गतिविधि मंद पड़ जाती है। सूर्यास्त होने के बाद भोजन करने से स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है, इसलिए रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए।
जिस प्रकार चूल्हे पर रखी हुई वस्तु को जब अग्नि की गर्मी मिलती है, तभी वह पकती है, उसी प्रकार हमारे आमाशय में जो भोजन हम डालते हैं, वह भी पेट की उष्णता (जठराग्नि) के कारण और सूर्य की रोशनी के कारण ही पचता है।
135 मज्झिमनिकाय कीटागिरि - सुत्त 70
हन्नाभिपद्मसंकोच चण्डरोचिरपायतः । अतो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्मजीवादनादपि।। - योगशास्त्र, 3/60
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