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प्रज्ञापना सूत्र
इसके दो भेद हैं-जीव पारिग्रहिकी और अजीव पारिग्रहिकी। द्विपद-दास, दासी और चतुष्पद-गाय, घोड़े आदि का संग्रह कर उन पर ममत्व-मूर्छा भाव रखना जीव पारिग्रहिकी है। धन, धान्य, क्षेत्र, वास्तु, सोने, चांदी आदि अजीव पदार्थों का संग्रह कर उन पर ममत्व-मूर्छा रखना अजीव पारिग्रहिकी है।
३. माया प्रत्ययिकी - माया के आचरण से लगने वाली क्रिया माया प्रत्ययिकी है । इसके दो भेद हैं - आत्मभाव वंचनता, परभाव वंचनता । अन्तर के कुटिल भावों को छिपा कर बाहर सरलता का प्रदर्शन करना, धर्माचरण में प्रमत्त होते हुए भी अपने को क्रियान्वत दिखाना आत्मभाव वंचनता है । जाली लेख, झूठे तोल माप आदि से दूसरों को ठगना परभाव वंचनता है ।
४. अप्रत्याख्यान क्रिया - त्यांग प्रत्याख्यान नहीं करने से लगने वाली क्रिया अप्रत्याख्यान क्रिया है। त्याग प्रत्याख्यान जीव विषयक और अजीव विषयक होते हैं, इसलिये इस क्रिया के, जीव प्रत्याख्यान क्रिया और अजीव प्रत्याख्यान क्रिया - ये दो भेद हैं।
५. मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी (मिच्छादसण वत्तिया) - तत्त्व में अतत्त्व का और अतत्त्व में तत्त्व का श्रद्धान रखना अथवा हीन अधिक मानना मिथ्यादर्शन है। मिथ्यादर्शन से लगने वाली क्रिया मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी है। इसके दो भेद हैं - १. अनभिगृहीत मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी और २. अभिगृहीत मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी। जिन जीवों ने अन्यतीर्थियों के मत को बिल्कुल नहीं जाना है
और न ग्रहण किया है, ऐसे संज्ञी या असंज्ञी जीवों के अनभिगृहीत मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया होती है । अभिगृहीत मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया के दो भेद - १. हीनातिरिक्त मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी (ऊणाइरित्त मिच्छा दंसण वत्तिया) और २. तद्व्यतिरिक्त मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी (तव्वइरित्त मिच्छा दंसण वत्तिया) सर्वज्ञ भगवान् ने जो वस्तु का स्वरूप बताया है उससे हीन एवं अधिक मानना हीनातिरिक्त मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया है । जैसे आत्मा तिल, जौ अथवा अंगुष्ठ प्रमाण है अथवा आत्मा सर्वव्यापक है इस प्रकार आत्मा का प्रमाण हीन, अधिक मानना। वस्तु का जैसा स्वरूप है उससे भिन्न विपरीत श्रद्धान करना तद्व्यतिरिक्त मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया है जैसे कुदेव, कुगुरु, कुधर्म को सच्चे देव, गुरु, धर्म समझना ।
आरंभिया णं भंते! किरिया कस्स कज्जइ? गोयमा! अण्णयरस्स वि पमत्तसंजयस्स। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! आरम्भिकी क्रिया किसके होती है ? उत्तर - हे गौतम! आरम्भिकी क्रिया किसी प्रमत्तसंयत के होती है। परिग्गहिया णं भंते! किरिया कस्स कज्जइ? गोयमा! अण्णयरस्स वि संजयासंजयस्स।
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