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________________ Satt छत्तीसवां समुद्घात पद - केवली द्वारा योग निरोध का क्रम ३३५ खण्ड अनुभाग का शेष रख कर बाकी सभी खण्ड दूसरे समय में क्षय करते हैं। तीसरे समय में स्थिति के एक खण्ड के असंख्यात खण्ड करते हैं और अनुभाग के एक खण्ड के अनन्त खण्ड करते हैं तथा स्थिति और अनुभाग का एक एक खण्ड शेष रख कर बाकी सभी खण्ड तीसरे समय में क्षय कर देते हैं । इसी तरह चौथा समय और पांचवां समय कहना । छठे समय में केवली भगवान् स्थिति के एक खण्ड के असंख्यात खण्ड करते हैं और अनुभाग के एक खण्ड के भी असंख्यात खण्ड करते हैं । ये असंख्यात खण्ड उतने होते हैं जितने केवली भगवान् की आयु के समय बाकी होते हैं। छठे समय में एक खण्ड स्थिति का एक खण्ड अनुभाग का और एक समय आयु का क्षय करते हैं। इसी तरह सातवें समय में, आठवें समय में यावत् मुक्त हों तब तक एक खण्ड स्थिति का, एक खण्ड अनुभाग का और एक समय आयु का क्षय करते रहते हैं । ****============ केवली द्वारा योग निरोध का क्रम से णं भंते! तहां समुग्धायगए किं मणजोगं जुंजइ, वइजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजइ ? Jain Education International गोयमा ! णो मणजोगं जुंजइ, णो वइजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजइ । कायजोगं णं भंते! जुंजमाणे किं ओरालियसरीरंकायजोगं जुंजइ ओरालियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ, किं वेडव्वियसरीरकायजोगं जुंजइ वेडव्वियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ, आहारगसरीरकायजोगं जुंजइ, आहारगमीसासरीरकायजोगं जुजइ, किं कम्मगसरीरकायजोगं जुंजइ ? गोयमा ! ओरालिय- सरीरकायजोगं पि जुंजड़ ओरालियमीसासरीरकायजोगं पि जुंजड़, णो वेडव्वियसरीरकायजोगं जुंजइ णो वेउव्वियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ, णो आहारगसरीरकायजोगं जुंजइ णो आहारगमीसासरीरकायजोगं जुंजइ, कम्मगसरीरकायजोगं पि जुंजइ, पढमऽट्टमेसु समएसु ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ, बिइय-छट्ट - सत्तमेसु समएसु ओरालियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ, तइय- चउत्थ - पंचमेसु समएस कम्मगसरीर कायजोगं जुंजइ ॥ ७१२ ॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! तथारूप से समुद्घात प्राप्त केवली क्या मनोयोग का व्यापार करता है, वचनयोग का व्यापार करता है या काययोग का व्यापार करता है ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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