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छत्तीसवां समुद्घात पद - वेदना समुद्घात आदि से समवहत जीवों....."
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उसी प्रकार नैरयिक के विषय में भी समझ लेना चाहिये। इतनी विशेषता है कि यहाँ 'जीव' के स्थान पर 'नैरयिक' शब्द का प्रयोग करना चाहिये। नैरयिक के समान ही यावत् वैमानिक पर्यन्त चौबीस दण्डकों के विषय में समझना चाहिये। कषाय समुद्घात संबंधी संपूर्ण वर्णन वेदना समुद्घात के समान कह देना चाहिये। . जीवे णं भंते! मारणंतिय समुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभइ तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवइए खेत्ते अप्फुण्णे, केवइए खेत्ते फुडे? ____ गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ते विक्खंभबाहल्लेणं, आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिजइभागं, उक्कोसेणं असंखिजाई जोयणाई एगदिसिं एवइए खेत्ते अप्फुण्णे, एवइए खेत्ते फुडे।
. भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मारणांतिक समुद्घात के द्वारा समवहत हुआ जीव, समवहत होकर जिन पुद्गलों को आत्म प्रदेशों से बाहर निकालता है, उन पुद्गलों से कितना क्षेत्र व्याप्त होता है तथा कितना क्षेत्र स्पृष्ट होता है ? .. उत्तर - हे गौतम! विस्तार और बाहल्य की अपेक्षा से शरीर प्रमाण क्षेत्र तथा लम्बाई की अपेक्षा जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग क्षेत्र तथा उत्कृष्ट असंख्यात योजन तक का क्षेत्र एक दिशा में व्याप्त होता है। इतना क्षेत्र एक दिशा में व्याप्त होता है और इतना क्षेत्र स्पृष्ट होता है।
से णं भंते! खेत्ते केवइकालस्स अप्फुण्णे केवइकालस्स फुडे?
गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं एवइकालस्स अप्फुण्णे, एवइकालस्स फुडे, सेसं तं चेव जाव पंच किरिया वि।
• एवं णेरइए वि, णवरं आयामेणं जहण्णेणं साइरेगं जोयणसहस्सं, उक्कोसेणं असंखिज्जाइं जोयणाई एगदिसिं एवइए खेत्ते अप्फुण्णे, एवइए खेत्ते फुडे, विग्गहेणं एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा, णवरं चउसमइएण वा ण भण्णइ, सेसं तं चेव जाव पंच किरिया वि।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वह क्षेत्र कितने काल में पुद्गलों से आपूर्ण (व्याप्त) होता है तथा कितने काल में स्पृष्ट होता है? - उत्तर - हे गौतम! वह क्षेत्र एक समय, दो समय, तीन समय और चार समय के विग्रह से इतने काल में उन पुद्गलों से व्याप्त होता है और इतने काल में स्पृष्ट होता है। शेष सारा वर्णन यावत् पांच क्रियाएं लगती है तक कह देना चाहिये।
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