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छत्तीसवां समुद्घात पद - चौबीस दण्डकों में बहुत्व की अपेक्षा....
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प्रश्न - हे भगवन्! एक-एक नैरयिक के नैरयिक पर्याय में अनागत केवलि समुद्घात कितने होंगे?
- उत्तर - हे गौतम! एक-एक नैरयिक के नैरयिक पर्याय में अनागत केवली समुद्घात नहीं होंगे। इसी प्रकार यावत् वैमानिकत्व में केवली समुद्घात कह देना चाहिये। विशेषता यह है कि मनुष्यत्व में अतीत केवलि समुद्घात नहीं हुआ। अनागत केवली समुद्घात किसी के होता है किसी के नहीं होता। जिसके होता है, उसके एक होता है। मनुष्य के मनुष्यत्व में अतीत केवली समुद्घात किसी के होता है किसी के नहीं होता। जिसके होता है उसके एक होता है। इसी प्रकार अनागत केवलि समुद्घात के विषय में कह देना चाहिये। इसी प्रकार ये चौबीस दण्डक चौबीसों दण्डकों में समझना चाहिये।
विवेचन - मनुष्य पर्याय के अलावा सभी स्व-पर स्थानों में केवलि समुद्घात का अभाव होता है। अर्थात् मनुष्य पर्याय में ही केवलि समुद्घात होता है और वह भी एक ही बार होता है।
णेरइयाणं भंते! णेरइयत्ते केवइया वेयणा समुग्घाया अतीता? गोयमा! अणंता। केवइया पुरेक्खडा?
गोयमा! अणंता। एवं जाव वेमाणियत्ते। एवं सव्वजीवाणं भाणियव्वं जाव वेमाणिया वेमाणियत्ते, एवं जाव तेयगसमुग्घाया णवरं उवउजिऊण णेयव्वं जस्स अस्थि वेउव्वियतेयगा॥६९४ ।।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बहुत से नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में रहते हुए कितने वेदना समुद्घात अतीत काल में हुए हैं ?
- उत्तर - हे गौतम ! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में रहते हुए अतीत काल में वेदना समुद्घात अनन्त हुए हैं।
प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में अनागत वेदना समुद्घात कितने होंगे?
उत्तर - हे. गौतम! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में भविष्य काल में अनंत वेदना समुद्घात होंगे। इसी प्रकार यावत् वैमानिकत्व में कह देना चाहिये। इसी प्रकार सर्व जीवों के यावत् वैमानिकों के वैमानिक पर्याय में अतीत और अनागत वेदना समुद्घात कह देने चाहिये। इसी प्रकार यावत् तैजस समुद्घात तक कहना चाहिये किन्तु विशेषता यह है कि उपयोग लगा कर जिसके वैक्रिय और तैजस समुद्घात संभव हो उसी के कहना चाहिये।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बहुवचन की अपेक्षा नैरयिक आदि के उस उसपर्याय में रहे हुए अतीत-अनागत वेदना आदि समुद्घातों का निरूपण किया गया है। नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में रहते
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